शाहजहाँ के समय के उत्तराधिकार युद्ध के कारणों को इंगित कीजिए।
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शाहजहाँ ने दक्षिण में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण किया और 1633ई. में उसे जीतकर मुगल सम्राज्य में मिला लिया। तथा अंतिम निजामशाही सुल्तान हुसैनशाह को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया।
शाहजहाँ ने अहमदनगर के वजीर एवं मलिक अंबर के अयोग्य पुत्र फतह खाँ को राज्य की सेवा में ले लिया।
शाहजी भोंसले पहले अहमदनगर की सेवा में थे किन्तु अहमदनगर के पतन के बाद उन्होंने बीजापुर की सेवा स्वीकार कर लिया।
अहमदनगर को साम्राज्य में मिलाने के बाद शाहजहाँ ने गोलकुंडा पर दबाव डाला। गोलकुंडा के अल्पायु शासक कुतुबशाह ने भयीत होकर 1636ई. में मुगलों से संधि कर ली।
गोलकुंडा से संधि के फलस्वरूप शाहजहाँ का नाम खुतबे और सिक्कों दोनों पर सम्मिलित किया गया।
गोलकुंडा के शासक ने अपनी एक पुत्री का विवाह औरंगजेब के पुत्र शाहजादा मोहम्मद से कर दिया।
गोलकुंडा के सुल्तान (शिया सम्प्रदाय)ने खुतबे से ईरान के शाह का माम हटाकर शाहजहाँ का नाम सम्मिलित कर दिया।जिसके फलस्वरूप 4 लाख हूनों (मुद्रा) का वह कर जो गोलकुंडा राज्य को बीजापुर को देना पङता था- माफ कर दिया।
मुहम्मद सैय्यद (मीर जुमला नाम से प्रसिद्ध जो एक फारसी व्यापारी था ) गोल कुंडा का वजीर था और वह किसी बात से नाराज होकर मुगलों की सेवा में चला गया था।
इसी मुहम्मद सैय्यद (मीर जुमला ) ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा भेंट किया था।
शाहजहाँ ने 1636ई. में बीजापुर पर आक्रमण किया और मुहम्मद आदिलशाह प्रथम को संधि करने के लिए विवश कर दिया फलस्वरूप सुल्तान ने 29 लाख रुपये प्रतिवर्ष कर के रूप में देने का वादा किया।
इसके अतिरिक्त बीजापुर ने परेन्द्रा, गुलबर्गा, बीदर और शोलापुर के किले मुगलों को दिया तथा गोलकुंडा से मित्रता और संघर्ष दोनों के निर्णय का अधिकार भी मुगलों को दे दिया।
जहाँगीर के समय में 1622ई. में कंधार मुगलों के अधिकार से निकल गया था किन्तु शाहजहाँ के कूटनीतिक प्रयास से असंतुष्ट किलेदार अलीमर्दीन खाँ ने 1639ई. में यह किला मुगलों को सौंप दिया था।
किन्तु शाहजहां के कूटनीतिक प्रयास से असंतुष्ट किलेदार अलीमर्दान खाँ ने 1639ई. में यह किला मुगलों को सौंप दिया था।
1648ई. में यह किला मुगलों से पुनः छिन गया और उसके बाद मुगल बागशाह पुनः इस पर कभी अधिकार नहीं कर सके।
शाहजहां ने मध्य एशिया अर्थात् बल्ख एवं बदख्शाँ की अव्यवस्था का लाभ उठाने की कोशिश की, परंतु यह अभियान असफल रहा और लगभग 40करोङ रुपये की हानि हुई।