1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक संबंधों पर टिप्पा
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Explanation:
1929 का आर्थिक संकट अनेक कारणों से हुआ | इसका विश्व अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा |
संकट के कारण-
1-कृषि क्षेत्र में अतिउत्पादन-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद कृषि उत्पाद में बढ़ोतरी के कारण खाधान्नों, जैसे-गेँहू की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक हो गई | इससे अनाज के मूल्य में कमी आई और अनाज का खरीददार नहीं रहा | अर्थशास्त्री काडलीफ के अनुसार कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल्य की विकृति 1929 -32 के आर्थिक संकटों के प्रमुख कारण थी |
2-उपभोक्ता की कमी-उपभोक्ता वस्तुओं का भी अतिउत्पादन हुआ, परंतु, गरीबी, बेरोजगारी से इन्हे खरीदनेवाला नहीं रहा | इससे बाजार आघृत अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई |
3-अमेरिका पूँजी के प्रवाह में कमी-1929 के बाद अमेरिका जो विश्व कर्जदाता था, ने कर्ज देना बंद कर दिया | 1928-29 के मध्य अमेरिकी कर्ज में भारी कमी आई | इससे अमेरिकी कर्ज पर आश्रित देशों के लिए तथा स्वयं अमेरिका के लिए आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया |
परिणाम:-
1-आर्थिक महामंदी से यूरोपीय अर्थव्यवस्था चरमरा गई | यूरोप के अनेकों बैंक रातों-रात बंद हो गए, मुद्रा का अवमूल्यन हो गया | इससे विश्व बाजार आघृत अर्थव्यवस्थाओं को गहरी ठेस लगी |
2-अमेरिका पर महामंदी का सबसे अधिक बुरा प्रभाव पड़ा | अमेरिका बैंकिंग व्यवस्था चौपट हो गई, सट्टेबाजी बढ़ी, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों के मूल्य में भारी गिरावट आई | गरीबी और बेरोजगारी बढ़ गई |
3-जर्मनी और ब्रिटेन भी आर्थिक संकट से प्रभावित हुए | जर्मन मुद्रा मार्क का अवमूल्यन हो गया | जर्मनी में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई जिसका लाभ हिटलर ने उठाया | ब्रिटेन ने महामंदी से बचने के लिए आर्थिक संरक्षणवाद की नीति अपनाई जिससे विश्व बाजार प्रभावित हुआ |
4-भारत में किसानों की स्थिति दयनीय हो गई | बंगाल का पटसन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ | व्यापार में भी भारी गिरावट आई | भारत से ब्रिटेन सोना का निर्यात करने लगा | इससे असंतोष बढ़ा | इसका लाभ उठाकर महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया |