| 2) अपने मित्र को एक पत्र लिखकर उससे पूछो कि वह गर्मी की
छुट्टियाँ कहाँ और कैसे बिताएगा । इस विषय में अपने विचार भी।
उसे बताओ |
Answers
Answer:
1.jatin
वह दूर से दिखाई देती आकृति मिस पाल ही हो सकती थी।
फिर भी विश्वास करने के लिए मैंने अपना चश्मा ठीक किया। नि:सन्देह, वह मिस पाल ही थी। यह तो ख़ैर मुझे पता था कि वह उन दिनों कुल्लू में ही कहीं रहती है, पर इस तरह अचानक उससे भेंट हो जाएगी, यह नहीं सोचा था। और उसे सामने देखकर भी मुझे विश्वास नहीं हुआ कि वह स्थायी रूप से कुल्लू और मनाली के बीच उस छोटे-से गाँव में रहती होगी। जब वह दिल्ली से नौकरी छोडक़र आयी थी, तो लोगों ने उसके बारे में क्या-क्या नहीं सोचा था !
बस रायसन के डाकखाने के पास पहुँचकर रुक गयी। मिस पाल डाकखाने के बाहर खड़ी पोस्टमास्टर से कुछ बात कर रही थी। हाथ में वह एक थैला लिये थी। बस के रुकने पर न जाने किस बात के लिए पोस्टमास्टर को धन्यवाद देती हुई वह बस की तरफ़ मुड़ी। तभी मैं उतरकर उसके सामने पहुँच गया। एक आदमी के अचानक सामने आ जाने से मिस पाल थोड़ा अचकचा गयी, मगर मुझे पहचानते ही उसका चेहरा ख़ुशी और उत्साह से खिल गया।
“रणजीत तुम?” उसने कहा, “तुम यहाँ कहाँ से टपक पड़े?”
“मैं इस बस से मनाली से आ रहा हूँ।” मैंने कहा।
“अच्छा ! मनाली तुम कब से आये हुए थे?”
“आठ-दस दिन हुए, आया था। आज वापस जा रहा हूँ।”
“आज ही जा रहे हो?” मिस पाल के चेहरे से आधा उत्साह ग़ायब हो गया, “देखो, कितनी बुरी बात है कि आठ-दस दिन से तुम यहाँ हो और मुझसे मिलने की तुमने कोशिश भी नहीं की। तुम्हें यह तो पता ही था कि मैं आजकल कुल्लू में हूँ।”
“हाँ, यह तो पता था, पर यह नहीं पता था कि कुल्लू के किस हिस्से में हो। अब भी तुम अचानक ही दिखाई दे गयीं, नहीं मुझे कहाँ से पता चलता कि तुम इस जंगल को आबाद कर रही हो?”
“सचमुच बहुत बुरी बात है,” मिस पाल उलाहने के स्वर में बोली, “तुम इतने दिनों से यहाँ हो और मुझसे तुम्हारी भेंट हुई आज जाने के वक़्त...।”
ड्राइवर ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न बजाने लगा। मिस पाल ने कुछ चिढक़र ड्राइवर की तरफ़ देखा और एक साथ झिडक़ने और क्षमा माँगने के स्वर में कहा, “बस जी एक मिनट। मैं भी इसी बस से कुल्लू चल रही हूँ। मुझे कुल्लू की एक सीट दे दीजिए। थैंक यू। थैंक यू वेरी मच !” और फिर मेरी तरफ मुडक़र बोली, “तुम इस बस से कहाँ तक जा रहे हो?”
“आज तो इस बस से जोगिन्दरनगर जाऊँगा। वहाँ एक दिन रहकर कल सुबह आगे की बस पकड़ूँगा।”
ड्राइवर अब और ज़ोर से हॉर्न बजाने लगा। मिस पाल ने एक बार क्रोध और बेबसी के साथ उसकी तरफ़ देखा और बस के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ती हुई बोली, “अच्छा, कुल्लू तक तो हम लोगों का साथ है ही, और बात कुल्लू पहुँचकर करेंगे। मैं तो कहती हूँ कि तुम दो-चार दिन यहीं रुको, फिर चले जाना।”
बस में पहले ही बहुत भीड़ थी। दो-तीन आदमी वहाँ से और चढ़ गये थे, जिससे अन्दर खड़े होने की जगह भी नहीं रही थी। मिस पाल दरवाज़े से अन्दर जाने लगी तो कंडक्टर ने हाथ बढ़ाकर उसे रोक दिया। मैंने कंडक्टर से बहुतेरा कहा कि अन्दर मेरे वाली जगह ख़ाली है, मिस साहब वहाँ बैठ जाएँगी और मैं भीड़ में किसी तरह खड़ा होकर चला जाऊँगा, मगर कंडक्टर एक बार ज़िद पर अड़ा तो अड़ा ही रहा कि और सवारी वह नहीं ले सकता। मैं अभी उससे बात कर ही रहा था कि ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी। मेरा सामान बस में था, इसलिए मैं दौडक़र चलती बस में सवार हो गया। दरवाज़े से अन्दर जाते हुए मैंने एक बार मुडक़र मिस पाल की तरफ़ देख लिया। वह इस तरह अचकचाई-सी खड़ी थी जैसे कोई उसके हाथ से उसका सामान छीनकर भाग गया हो और उसे समझ न आ रहा हो कि उसे अब क्या करना चाहिए।
बस हल्के-हल्के मोड़ काटती कुल्लू की तरफ़ बढऩे लगी। मुझे अफ़सोस होने लगा कि मिस पाल को बस में जगह नहीं मिली तो मैंने ही क्यों न अपना सामान वहाँ उतरवा लिया। मेरा टिकट जोगिन्दरनगर का था, पर यह ज़रूरी नहीं था कि उस टिकट से जोगिन्दरनगर तक जाऊँ ही। मगर मिस पाल से भेंट कुछ ऐसे आकस्मिक ढंग से हुई थी और निश्चय करने के लिए समय इतना कम था कि मैं यह बात उस समय सोच भी नहीं सका था। थोड़ा-सा भी समय और मिलता, तो मैं ज़रूर कुछ देर के लिए वहाँ उतर जाता। उतने समय में तो मैं मिस पाल से कुशल-समाचार भी नहीं पूछ सका था, हालाँकि मन में उसके सम्बन्ध में कितना-कुछ जानने की उत्सुकता थी। उसके दिल्ली छोडऩे के बाद लोग उसके बारे में जाने क्या-क्या बातें करते रहे थे। किसी का ख़्याल था कि उसने कुल्लू में एक रिटायर्ड अँग्रेज़ मेज़र से शादी कर ली है और मेज़र ने अपने सेब के बग़ीचे उसके नाम कर दिये हैं। किसी की सूचना थी कि उसे वहाँ सरकार की तरफ़ से वज़ीफ़ा मिल रहा है और वह करती-वरती कुछ नहीं, बस घूमती और हवा खाती है। कुछ ऐसे लोग भी थे जिनका कहना था कि मिस पाल का दिमाग़ ख़राब हो गया है और सरकार उसे इलाज के लिए अमृतसर पागलख़ाने में भेज रही है। मिस पाल एक दिन अचानक अपनी लगी हुई पाँच सौ की नौकरी छोडक़र चली आयी थी, उससे लोगों में उसके बारे में तरह-तरह की कहानियाँ प्रचलित थीं।