2. बिस्मिल ने कौन - कौन सी भाषाएँ सीखीं?
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सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है”
ये लाइनें भारत में बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर हैं और इन्हें सुनकर जिस व्यक्ति का नाम उभरकर आता है, वो हैं राम प्रसाद बिस्मिल. राम प्रसाद बिस्मिल खुद एक अच्छे कवि थे, लेकिन ऊपर लिखी लाइनें उन्होंने नहीं, बल्कि शाह मोहम्मद हसन बिस्मिल अज़ीमाबादी ने लिखी थीं. बिस्मिल ने फांसी पर चढ़ने के पहले इस गीत को गाया और इसलिए ये इनके नाम से मशहूर हो गया.
देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल के नाम पर मणिपुर षडयंत्र और काकोरी ट्रेन डकैती जैसी कई घटनाएं दर्ज हुईं. इनके अलावा उनकी ज़िंदगी से जुड़ी तमाम ऐसी रोचक घटनाएं हैं, जो उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखी हैं. बिस्मिल को काकोरी ट्रेन डकैती मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस दौरान उन्हें गोरखपुर जेल में रखा गया, जहां उन्होंने आत्मकथा लिखी. ये उन्होंने फांसी के दो दिन पहले पूरी की थी. फांसी के दो दिन पहले जब उनकी मां उनसे मिलने जेल में आईं, तो उन्होंने अपनी आत्मकथा खाने के डिब्बे में रखकर मां के हाथों जेल से बाहर भिजवा दी. बाद में 1928 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने इसे छपवाया. इसमें राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने जीवन के कई पहलुओं को लिखा है-
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