3. ईमानदारों के सम्मेलन मेंहरिशंकर परसाई
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Harishankar Parasai Imanadaronka sammelana Kannada Lekhaka hai
ईमानदारों के सम्मेलन में हरिशंकर परसाई ...
ईमानदारों के सम्मेलन में हरिशंकर परसाई एक व्यंगात्मक रचना है, जिसके लेखक स्वयं हरिशंकर परसाई हैं। हरिशंकर परसाई अपनी व्यंग्यात्मक रचनाओं के लिए बेहद प्रसिद्ध रहे हैं। वे व्यंग्यात्मक शैली में अनोखे संस्मरण और लेखों को लिखकर समाज के पाखंड पर प्रहार करते रहे हैं।
हरिशंकर परसाई का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में 22 अगस्त 1924 को हुआ था। वह हिंदी के पहले रचनाकार रहे हैं, जिन्होंने व्यंग को एक सम्मानित एवं लोकप्रिय विधा का दर्जा दिलवाया। उन्होंने हल्की-फुल्की व्यंग्यात्मक और मनोरंजनात्मक शैली में संस्मरणों को लिखकर पाठकों के मन में गुदगुदी ही नहीं पैदा की बल्कि सामाजिक पाखंड पर कटाक्ष भी किया है। प्रसिद्ध रचना ईमानदारों के सम्मेलन में हरिशंकर परसाई में हरिशंकर परसाई ने समाज के इसी पाखंड पर व्यंग किया है। जिसमें उन्होंने स्वयं को भी शामिल किया है।
हरिशंकर परसाई को एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए निमंत्रण पत्र मिलता है। इसमें लिखा था कि हम लोग शहर में एक ईमानदारी का सम्मेलन कर रहे हैं। आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार व्यक्ति हैं, इसके लिए आप हमारे सम्मेलन का उद्घाटन करें। हम आपको आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे तथा आपके रहने व खाने की उत्तम व्यवस्था करेंगे। यदि आप हमारे सम्मेलन में भाग लेंगे तो शहर के ईमानदारों को एक प्रेरणा मिलेगी।
लेखक बड़े खुश हुए और वह सम्मेलन में भाग लेने के लिए राजी हो गये। लेखक दूसरे दर्जे से सफर करना चाहते थे ताकि दूसरे दर्जे में जाकर आयोजकों से पहले दर्जे का किराया लें और पैसे बचा लें। स्टेशन पर पहुंचने पर लेखक का जोरदार स्वागत हुआ। उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया गया। इतनी सारी मालायें देखकर लेखक के मन में विचार आया कि आस-पास यदि कोई माली होता तो फूल मालायें बेच लेते।
सम्मेलन में लेखक ने भाग लिया। सम्मेलन में लेखक की चप्पलें गायब हो गईं। अगले दिन लेखक का धूप का चश्मा गायब हो गया। एक-एक करके सारी चीजें गायब होने लगी। अंत में उनका ताला भी गायब हो गया। तब लेखक ने सोचा कि ज्यादा रुके तो वह भी गायब हो जाएंगे।
इस तरह सम्मेलन में लेखक को अजीब अनुभव प्राप्त हुए। कहने को तो सम्मेलन ईमानदारों का था, लेकिन वहां सब के सब बेईमान थे। स्वयं लेखक के मन में भी कुछ समय के लिए बेईमानी का ख्याला आया जब उन्होंने दूसरे दर्जे में यात्रा करके पहले दर्जे का किराया वसूलने की सोची और फूलमालाओं को बेचने की सोची।
इस तरह लेखक ने समाज के पाखंड पर व्यग्यात्मक शैली में कटाक्ष किया है कि लोग खाली दिखाने के लिये ईमानदारी की पाखंड रचते हैं, मन में सबके बेईमानी ही होती है।