4. सूरदास की कविता में अभिव्यक्त वात्सल्य पक्ष का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
Answers
Shrikrishnanuragi bhaktkawi Surdas ko apne aaradhya Shri Krishna ki wajah se antarik divya-drishti prapt h. Surdas hindi kawyasahitya ke surya h . inki kawya pratibha hindi kawyasahitya ko bhakti ka alok pradan karti h. inhe watsalyaras samrat aur khanjannain ki wisesh upadhi di gayi h kyunki inki bhakti drishti bari paini thi. inki kawyasadhna multah premashrit h . inke prem ke teen roop is kawya me prashtoot hue h.
Ishwarviswyak prem , santanwisyak prem aur premikawisyak prem . ishwarviswyak prem ko bhakti kehte h, santanwisyak prem ko watsalya kehte h aur premikawisyak prem ko rati yani prem aur shringar kehte h. inke pado me shringar aur watsalya raso ki pradhanta h.
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सूरदास की कविता में अभिव्यक्त वात्सल्य पक्ष का सोदाहरण विवेचन निम्नलिखित है |
Explanation:
सूरदास जी को हिंदी कवियों के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक माना गया है और इनको वातसल्य रस का एक बहुत बड़ा सम्राट भी माना गया है क्योंकि इन्होंने श्रृंगार और अपने शांत रसों का एक बहुत ही प्यारा , बड़ा सुन्दर और ममस्पर्शी करने वाला जिसको कहा जाता है ऐसा वर्णन अपनी कविताओं में प्रस्तुत किया है |
उन्होंने कृष्ण भगवान की बाल लीलाओं को इतने अद्भुत अंदाजे से प्रस्तुत किया है कि उनकी आंतरिक आंखें ही जिसको देख पाती हैं इतना सुंदर इतना व्यापक इतना यथार्थ और इतना मोहक रूप देखने को मिलता है जितना कि कोई भी उसे अपनी आंखों से देखें तभी उसे नहीं दिखेगा सूरदास ने अपने वात्सल्य का एक बहुत ही सुंदर वर्णन करते हुए अधिक दिल से भाव विभोर होते हुए बालकिशन की लीलाओं का वर्णन किया है कि कि कोई भी संसार में ऐसी कोई और सुंदरता उनके लिए बची नहीं रह पाती है |
सूरदास जी का वात्सल्य बहुत ही भाव विभोर है पहला है संयोग वातसल्य
और दूसरा है वियोग वात्सल्य |
संयोग वात्सल्य मैं उन्होंने भगवान कृष्ण के जन्म लेने के बाद के दर्शन को दिखाया है इसमें उन्होंने उनके जन्मदिन और बचपन की लीलाओ पर एक बहुत ही सुंदर स्वाभाविक चित्र को दर्शाया था
वियोग वात्सल्य में उन्होंने एक दिल को स्पर्श करने का वर्णन किया है जिसमें कोई भी अगर जीवित प्राणी है भगवान के बिना नहीं रह सकता जैसे कि उनकी मां यशोदा ने कभी कल्पना भी नहीं कर सकती कि मैं बिना कृष्ण के ब्रज में रहे