4. दिर्य
भूमि का निर्माण देवों ने किया है, वह अनंत काल से है। उसके
भौतिक रुप, सौन्दर्य और समृद्धि के प्रति होना हमारा आवश्यक कर्तव्य है।
भूमि के पार्थिव स्वरुप के प्रति हम कितने अधिक जाग्रति होंगे उतनी ही
हमारी राष्ट्रीयता बलवती हो सकेगी। यह पृथ्वी सच्चे अर्थों में समस्त
राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी है। जो राष्ट्रीयता पृथिवी के साथ नहीं
जुड़ी , वह निर्मूल होती है। राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी.
उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा। इसलिए पृथ्वी के भौतिक
स्वरुप की आघोपांत जानकारी प्राप्त करना, उसकी
सुन्दरता
उपयोगिता
और महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।
प्रश्न-(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ii) देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का क्या
कर्तव्य है?
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iv) पृथ्वी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?
(v) देव एवं निर्माण शब्द का विलोम लिखिए।
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प्रश्न-
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उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक तथा लेखक का नाम लिखिए।
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