Hindi, asked by pushkar1447, 11 months ago

5 dohe on madhur vani arth sahit

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Answered by Anonymous
1

Hi Pushkar1447, here is ur answer....


1....

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।

जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥


अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब से पाने चाह और चिंता मिट गयी है, तब से मन बेपरवाह हो गया है| इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा शहंशाह है|


2.....

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥


अर्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए|


3.....

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||


अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष (जहर) से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीश(सर) देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है


4......

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |

सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||


अर्थ – अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है


5........

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||


अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

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