5. मुंशीजी अपने बड़े भाई से कैसे उऋण हुए
'शानेदार की कमाई और फस का तापना दोनों लगता है। लेखक ने
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पूरा प्रश्न
1) मुंशी जी अपने बड़े भाई के कर्ज से कैसे उऋण हुए?
2)थानेदार की कमाई और फूस का तपना एक बराबर है। लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह प्रश्न "कहानी के प्लॉट" कहानी से ली गई है जो शिवपूजन सहाय द्वारा रचित है। मुंशीजी के बङे भाई पुलिस-दरोगा थे, ये उस जमाने की बात है जिस समय अंग्रेजी जाने वालों की संख्या बहुत थी। इसलिए उर्दू भाषा पढ़ने वाले ऊंचे ओहदे प्राप्त करते थे।
मुंशी जी अपने भाई के मरने के बाद उनके घोड़े को बेच कर उऋण हुए।
व्याख्या:
- लेखक ने थानेदार की कमाई और फूस का तपना एक समान कहा है क्योंकि उन्होंने जो भी अपने जीवन में कमाया वो खर्च करके फूंक डाला।
- लेखक यह कहना चाहते है की जिस प्रकार फूस तुरंत तप कर जल कर खत्म हो जाता है उसी प्रकार पैसा ज्यादा देर नहीं टिकता।
- दारोगा जी ने जितना कमाया अपनी जिंदगी में ही फूंक डाला। उनके मृत्यु के बाद सिर्फ उनकी घोङी बची थी,जो थी तो मात्र सात रुपए की। मगर वह घोड़ी तुर्की घोङों की कान काटती थी। उस घोड़ी पर बङे बङे अंग्रेज अधिकारी दांत गड़ाए रह गए,मगर दरोगा जी ने सबको निबुआ नोन अर्थात् नीम्बू और नमक चटा दिया।
- इसी घोड़ी के बदौलत उनकी तरक्की रह गई पर वह अंग्रेज अफसरों के घपले में नहीं आए।इतने काबिल, और मुस्तैद आदमी होते हुए भी दारोगा के दारोगा रह गए, अर्थात् प्रमोशन नहीं हुआ।
- परन्तु उनकी घोङी उनकी मुहब्बत की लाज रख ली। उसी घोड़ी को बेच कर धूमधाम से उनके भाई ने उनका श्राद्ध करा दिया।
- एक गोरे अफसर के हाथ अच्छी खासी रकम पर घोड़ी को ही बेच कर मुन्शीजी अपने बङे भाई से उऋण हुए।
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