Hindi, asked by parotos, 1 year ago

Aadunik bharat par nibandh

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Answered by Atomic007
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भारत में परम्परा और आधुनिकता विरोधाभास के रूप में मौजूद हैं । विकास की योजनाओं में परम्पराएँ बाधक सिद्ध हुई है । जातीयता व साम्प्रदायिकता ने राष्ट्रीय दृष्टिकोण में रोड़ा पैदा किया है पवित्रता और अपवित्रता की प्राचीन धारणा धर्म-निरपेक्षता के मार्ग में बाधक रही है ।

धर्म और धार्मिक संस्कार तथा कर्म-काण्ड विवेक के विकास में बाधक हैं । प्रदत्त व अर्जित पदों का तालमेल नहीं बैठ पाया है । परम्परा प्रदत्त पदों को चाहती है तो आधुनिकता अर्जित पदों की पुष्टि करती है । आधुनिकता तटस्थता चाहती है तो परम्परा भावात्मकता चाहती है ।

हिन्दुओं के प्राचीन सिद्धान्त जैसे कर्म का सिद्धान्त, जीवन चक्र का सिद्धान्त, संस्तरण खण्डात्मकता, परलोकवाद, पवित्रता-अपवित्रता की धारणा, पुरुषों की प्रधानता तथा कौटुम्बिकता आदि आधुनिकीकरण में बाधक है । आज का भारत परम्परा और आधुनिकता की दुविधा में फँस गया है ।

उसके सामने एक द्वन्द है कि वह किस सीमा तक परम्परा को छोड़े एवं किस सीमा तक आधुनिकता को अपनाये । 80 प्रतिशत लोग जो गाँवों में रहते हैं, परम्परावादी हैं । दूसरी ओर गाँव आधुनिकता से बिल्कुल अछूते भी नहीं हैं यातायात, रेल, मोटर, सड़क, संचार, रेडियो, समाचारपत्र, शिक्षा, प्रशासन, सामुदायिक योजनाएँ आदि ने वहाँ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है । गाँवों में भौतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहे हैं और नये मूल्य, सम्बन्ध व आकांक्षायें भी पनप रहे हैं ।

वर्तमान में गाँवों में भी परिवर्तन की हवा चलने लगी है, अब उन्हें हम स्थिर और जड़ नहीं कह सकते । गाँवों की समाज व्यवस्था, भाई-चारा, जाति एवं स्थानीयता पर आधारित थी । परिवार, वंश एवं जाति से जुड़ा हुआ था, अब उसका स्वरूप बदला है । परिवार में व्यक्तिवाद उभर रहा है, जबकि पहले सामूहिकता को महत्व दिया जाता था ।

अब समूह में लिंग, आयु व सम्बन्ध के आधार पर अधिकार का निर्धारण न होकर योग्यता, अनुभव तथा ज्ञान के आधार पर होता है संयुक्त परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध बदले हैं । स्त्रियों का परिवार में महत्व बढ़ा है । जाति के क्षेत्र में विवाह, व्यवसाय संस्तरण, कर्म-काण्ड व पवित्रता की धारणा में परिवर्तन हुआ है, अन्तर्विवाह की धारणा यद्यपि अभी भी दृढ़ है ।

जातियों में छुआछूत को कम करने के आन्दोलन हुए है तथा नगरों में विभिन्न जातियों के मेलजोल के अवसर बड़े हैं । गाँवों में भी जजमानी प्रथा व व्यवसाय में परिवर्तन हुए हैं राजनीति में अन्तर्जातीय समझौते हुए हैं । अल्पसंख्यक उच्च जातियों के पास सत्ता और शक्ति है ।

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