Aaj ke chatro me anushan or natikita ki kami in hindi pastav
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अनुशासन मनुष्य के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि मनुष्य अनुशासन में जीवन-यापन करता है, तो वह स्वयं के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य की राह निर्धारित करता है। मनुष्य द्वारा नियमों में रहकर नियमित रूप से अपने कार्य को करना अनुशासन कहा जाता है। यदि किसी के अंदर अनशासनहीनता होती है तो वह स्वयं के लिए कठिनाईयों की खाई खोद डालता है। विद्यार्थी हमारे देश का मुख्य आधार स्तंभ है। यदि इनमें अनुशासन की कमी होगी, तो हम सोच सकते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा।
विद्यार्थी को चाहिए कि प्रतिदिन प्रात:काल उठकर व्यायाम करे, अध्यापन करे, स्नान आदि करे और विद्यालय के लिए शीघ्र ही तैयार हो जाए। समय पर विद्यालय जाए। घर आकर समय पर भोजन करे, समय पर अध्यापन कार्य और खेलने भी जाए। रात्रि के भोजन के पश्चात समय पर सोना भी विद्यार्थी के लिए उत्तम रहता है। इस तरह का व्यवस्थित जीवन-शैली उसे तरोताज़ा रखती है और जीवन में स्वयं को सदृढ़ भी रखती है।
यदि आँखें उठा कर देखा जाए तो अनुशासन हर रूप में विद्यमान है। सूर्य समय पर उगता और समय पर अस्त हो जाता है। जीव-जन्तु भी इसी अनुशासन का पालन करते हुए दिखाई देते हैं। पेड़-पौधों में भी यही अनुशासन व्याप्त रहता है। घड़ी की सुई भी अनुशासन का पालन करे हुए चलती है। ये सब हमें अनुशासन की ही शिक्षा देते हैं।
यदि दृष्टि डाली जाए तो समाज में चारों तरफ अनुशासनहीनता दिखाई देती है। यही कारण है कि देश की प्रगति और विकास सही प्रकार से हो नहीं पा रहा है। यदि विद्यर्थियों में अनुशासन नहीं होगा तो समाज की दशा बिगड़ेगी और यदि समाज की दशा बिगड़ेगी तो देश कैसे उससे अछुता रहेगा। हमें चाहिए कि विद्यालयों में अनुशासन पर ज़ोर देना चाहिए। विद्यार्थियों का मन चंचल और शरारती होता है। अनुशासन उनके चंचल मन को स्थिर करता है। यह स्थिरता उन्हें जीवन के सघर्ष में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ने में सहायक होती है। यह सब अनुशासन के कारण ही संभव हो पाता है।
विद्यार्थी को चाहिए कि प्रतिदिन प्रात:काल उठकर व्यायाम करे, अध्यापन करे, स्नान आदि करे और विद्यालय के लिए शीघ्र ही तैयार हो जाए। समय पर विद्यालय जाए। घर आकर समय पर भोजन करे, समय पर अध्यापन कार्य और खेलने भी जाए। रात्रि के भोजन के पश्चात समय पर सोना भी विद्यार्थी के लिए उत्तम रहता है। इस तरह का व्यवस्थित जीवन-शैली उसे तरोताज़ा रखती है और जीवन में स्वयं को सदृढ़ भी रखती है।
यदि आँखें उठा कर देखा जाए तो अनुशासन हर रूप में विद्यमान है। सूर्य समय पर उगता और समय पर अस्त हो जाता है। जीव-जन्तु भी इसी अनुशासन का पालन करते हुए दिखाई देते हैं। पेड़-पौधों में भी यही अनुशासन व्याप्त रहता है। घड़ी की सुई भी अनुशासन का पालन करे हुए चलती है। ये सब हमें अनुशासन की ही शिक्षा देते हैं।
यदि दृष्टि डाली जाए तो समाज में चारों तरफ अनुशासनहीनता दिखाई देती है। यही कारण है कि देश की प्रगति और विकास सही प्रकार से हो नहीं पा रहा है। यदि विद्यर्थियों में अनुशासन नहीं होगा तो समाज की दशा बिगड़ेगी और यदि समाज की दशा बिगड़ेगी तो देश कैसे उससे अछुता रहेगा। हमें चाहिए कि विद्यालयों में अनुशासन पर ज़ोर देना चाहिए। विद्यार्थियों का मन चंचल और शरारती होता है। अनुशासन उनके चंचल मन को स्थिर करता है। यह स्थिरता उन्हें जीवन के सघर्ष में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ने में सहायक होती है। यह सब अनुशासन के कारण ही संभव हो पाता है।
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9
#ur Ans
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अनुशासन की पहली पाठशाला परिवार होता है और दूसरी विद्यालय। इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना करना दुष्कर है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण और संचालन में उस आबादी का बड़ा हाथ होता है, जो अपने किसी भी रूप में अनुशासनरूपी सूत्र में गुंथे होने से संभव हो पाता है। दरअसल, अनुशासन की प्रक्रिया रैखिक ही नहीं, बल्कि चक्रीय भी होती है। वह पीछे की और लौटती है, पर ठीक उसी रूप में नहीं। ऐसे में अगर अनुशासन को सरल रेखा खींच कर उसका स्वरूप निर्धारित करने का प्रयास किया जाए तो उसमें दुर्घटना की संभावनाएं हैं।
ज्यादातर शिक्षक विद्यालय में अनुशासन के सही अर्थों से अनभिज्ञ होते हैं। उन्हें यह कहते सुना जा सकता है कि बिना डर के बच्चे पढ़ेंगे कैसे! और खेलने से क्या होता है? अधिकतर विद्यार्थी खेलों में रुचि रखते हैं और इस कई ऐसे मौके आते हैं जब विद्यार्थी एक खिलाड़ी के रूप में खुद से नियमों का पालन करता है। वह आगे चल कर समाज के एक नागरिक के रूप में भी जारी रहता है। वास्तव में खेल ‘आत्मप्रेरित अनुशासन’ प्राप्ति का सबसे उपयुक्त माध्यम हैं, जिसे गांधीजी ने व्यक्तिगत अनुशासन कहा है। जब तक कोई भी व्यक्ति अपने आप अनुशासन और नियम-पालन में बंध नहीं जाता, तब तक उसे दूसरे से वैसा कराने की आशा करना व्यर्थ है। एक प्राचीन कहानी है, जिसमें अपने बच्चे के अधिक मिठाई खाने की शिकायत लेकर आई मां को गुरु नानक सात दिन बाद आने का समय देते हैं। इन सात दिनों तक खुद मीठा खाना छोड़ कर ही वे बालक को मीठे के अवगुणों के बारे में समझाते हैं।
☺✌
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अनुशासन की पहली पाठशाला परिवार होता है और दूसरी विद्यालय। इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना करना दुष्कर है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण और संचालन में उस आबादी का बड़ा हाथ होता है, जो अपने किसी भी रूप में अनुशासनरूपी सूत्र में गुंथे होने से संभव हो पाता है। दरअसल, अनुशासन की प्रक्रिया रैखिक ही नहीं, बल्कि चक्रीय भी होती है। वह पीछे की और लौटती है, पर ठीक उसी रूप में नहीं। ऐसे में अगर अनुशासन को सरल रेखा खींच कर उसका स्वरूप निर्धारित करने का प्रयास किया जाए तो उसमें दुर्घटना की संभावनाएं हैं।
ज्यादातर शिक्षक विद्यालय में अनुशासन के सही अर्थों से अनभिज्ञ होते हैं। उन्हें यह कहते सुना जा सकता है कि बिना डर के बच्चे पढ़ेंगे कैसे! और खेलने से क्या होता है? अधिकतर विद्यार्थी खेलों में रुचि रखते हैं और इस कई ऐसे मौके आते हैं जब विद्यार्थी एक खिलाड़ी के रूप में खुद से नियमों का पालन करता है। वह आगे चल कर समाज के एक नागरिक के रूप में भी जारी रहता है। वास्तव में खेल ‘आत्मप्रेरित अनुशासन’ प्राप्ति का सबसे उपयुक्त माध्यम हैं, जिसे गांधीजी ने व्यक्तिगत अनुशासन कहा है। जब तक कोई भी व्यक्ति अपने आप अनुशासन और नियम-पालन में बंध नहीं जाता, तब तक उसे दूसरे से वैसा कराने की आशा करना व्यर्थ है। एक प्राचीन कहानी है, जिसमें अपने बच्चे के अधिक मिठाई खाने की शिकायत लेकर आई मां को गुरु नानक सात दिन बाद आने का समय देते हैं। इन सात दिनों तक खुद मीठा खाना छोड़ कर ही वे बालक को मीठे के अवगुणों के बारे में समझाते हैं।
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