आजकल मनुष्य की सारी बातें धातु के ठीकरों पर ठहरा दी गई है ।सबकी टकटकी टके की ओर लगी हुई है ।जो बातें पारस्परिक प्रेम की दृष्टि से , न्याय की ।दृष्टि से , धर्म की दृष्टि से , की जाती थी , वे भी रुपये पैसेकी दृष्टि से होने लगी है ।पैसे से राज सम्मान की प्राप्ति , विद्या की प्राप्ति और न्याय तक की प्राप्ति होती है ।जिनके पास कुछ रुपया है वे बड़े - बड़े विद्यालयों में अपने लड़कों को भेज सकते है, न्यायालयों में फीस देकर अपने मुकदमे दाखिल कर सकते हैं और महगे वकील बेरिस्टर करके बढ़िया - खासा निर्णय करा सकते हैं ।अत्यन्त भौरू और कायर होकर बहादुर कहला सकते हैं ।राजधर्म , आचार्य धर्म , वीर धर्म सब पर सोने का पानी फिर गया , सवटका - धर्म हो गये ।धन की पैठ मनुष्य के सब कार्य क्षेत्रों में करा देने से , उसके प्रभाव को इतना अधिक विस्तृत कर देने से , जाति - धर्म और क्षात्र धर्म दोनों का लोप हगया - केवल वणि धर्म रह गया ।व्यापार नीति , राजनीति का प्रधान अंग हो गयी है ।बड़े - बड़े राज्य माल की बिक्री के लिए लड़ने वाले सौदागर हो गये हैं ।अब सदा एक देश दूसरे देश का चुपचाप दबे - पाँव धन हरण करने कीताक में रहता है ।जब तक यह व्यापारोन्माद दूर न होगा तब तक |इस पृथ्वी पर सुख - शान्ति न होगी ।दूर यह तभी होगा , जब क्षात्र धर्म की संसार में फिर प्रतिष्ठा होगी ।( क ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शर्षक लिखिए ।।( ख ) धातु के ठीकरों से क्या तात्पर्य हैं ?।( ग ) “ सब पर सोने का पानी फिर गया ।'इस कथन का क्या आशय है ?( घ ) पृथ्वी पर सुख - शान्ति कब सम्भव है ?( ङ ) ' भीरू ' शब्द का क्या अर्थ है ?
Answers
Answered by
0
(क) व्यापारोन्माद (ख) पैसो की चमक ( ग) सब पर पैसों का नशा है ।(घ) जब जब तक यह व्यापारोन्माद दूर नहीं होगा तब तक पृथ्वी पर सुख शांति नहीं होगी (ड) डरपोक
Similar questions