आपकी राय में, राज्यों के भाषाई पुनर्गठन ने भारत का हित या अहित किया है?
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भाषाई पुनर्गठन से भारत का हित
- इस आयोग ने राष्ट्रीय एकता,प्राशसनिक और आर्थिक विकास, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा तथा भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार बनाया गया
- आंदोलन में यह बात उठी थी की जनतंत्र में प्रशासन को आम लोगों की भाषा में काम करना चाहिए ताकि प्रशासन जनता के नज़दीक आ सके |
- सन 1953 में पोट्टी श्रीमुलु की अनशन के कार मृत्यु हो जाने के पश्चात हिंसा भड़क उठी | तत्पश्चात आंध्र प्रदेश | राज्य का गठन हुआ | इसके कारण ही राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थपना करनी पड़ी | जिसने 1956 में भाषा आधारित सिद्धांत के अनुमोदन पर औपचारिक रूप से अंतिम मोहर लगा दी |
- भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत सरकार ने अंग्रेजी राज के दिनों के 'राज्यों ' को भाषयी आधार पर पुनर्गठित करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की |
- 22 दिसंबर 1953 में न्याधीश फ़जल अली की अध्यक्षता में प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ | इस आयोग के तीन सदस्य - न्यामूर्ति फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और केएम थे |
- इस आयोग ने 30 दिसंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट सौपी | आंदोलन में यह बात उठी थी की जनतंत्र में प्रशासन को आम लोगों की भाषा में काम करना चाहिए ताकि प्रशासन जनता के नज़दीक आ सके |
- 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम सांसद ने पास किया
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Q.1.- भारत में भाषाई राज्यों के गठन के कारणों की चर्चा कीजिए
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Q.2.- राज्यों के पुनर्गठन को कब, आयोग बना बतलाओ तुम ? ये कौन सदस्य बताओ तुम ?
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Q.3.- भारत में भाषाई राज्यों के गठन के उद्देश्य क्या थे ? और क्या भारतीय एकता बनाए रखने में सफल रही कि नहीं ?
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