आरक्षण समदान निबन्ध
Answers
Answer:
दुनिया के समस्त देशो की तुलना में हमारे भारत का संविधान सबसे बड़ा है. भारत का संविधान २६ नवम्बर १९४९ को पारित हुआ तथा २६ जनवरी १९५० को लागू/ प्रभावी हुआ. यह संविधान सभी नागरिको के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है. जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सभी को समान अधिकार देता है. किन्तु यहाँ यह प्रश्न उभर कर आता है जब देश के सभी नागरिको को एक समान अधिकार दिए गए हैं तो कौन से कारण हैं जो कही न कही हम सभी के अंतर्मन को कचोटता रहता है. क्या समान अधिकार वाले गड़राज्य भारत में सभी को समान अधिकार प्राप्त है या फिर यह सिर्फ संविधान में लिखित अवधारणा ही मात्र बनी हुई है. सभी को समान अधिकार प्राप्त होने के बाद भी असंतोष की भावना लोगो के मन क्यों बनी हुई है, क्या ऐसे लोगो को संविधान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी नहीं है या फिर सामाजिक तौर पर वह अपने अधिकारों का लाभ प्राप्त करने में अक्षम रहे हैं. अब बात आती है समान अधिकार रखने वाले सभी नागरिको के बीच आरक्षण प्राप्त करने वाले लोगो की, यह आरक्षण क्या है जिसका लाभ समाज के सभी वर्गों को न मिलकर कुछ वर्गों तक ही सीमित है, इसके बावजूद भी आरक्षण का लाभ उठा रहे नागरिको को संतोष के स्थान पर असंतोष ही बना हुआ है. आरक्षण बढ़ाये जाने के सम्बन्ध में कितने ही प्रकार के आंदोलन भी चलाये जाते रहते हैं, जिसके चलते नुकसान उन सबको भी उठाना पड़ता है जो आरक्षण का लाभ भी नहीं पा रहे हैं, ऐसी असमानता क्यों ? यह प्रश्न बार बार उभर कर सामने आता है और तब तक आता रहेगा जब तक समान अधिकार प्रदान करने वाले संविधान के अनुसार सभी को एक समान मौलिक अधिकार न प्राप्त हो. आरक्षण पाने वाले यह लाभ अवश्य सुनिश्चित करते है की आरक्षण के बल पर वह अपनी पढाई पूरी कर लेते हैं, जैसा की आरक्षण का लाभ न पाने वाला भी करता है. आरक्षण के लाभ पाने वाले बेरोजगारी की समस्या दूर करने में भी काफी योगदान देते हैं जैसे की किसी विभाग में नौकरी का आवेदन निकलते ही स्पष्ट लिखा होता है की आरक्षित वर्ग को इतनी सीट, इतनी फीस का लाभ मिलेगा, अब ऐसे समय पर फिर प्रश्न उठता है की आरक्षण के बल पर नौकरी पाने वाले क्या सरकार को या जनता को वो लाभ दे पाते हैं, जिनके लिए किसी योग्य को पीछे रख कर उन्हें नौकरी का लाभ प्रदान किया गया है. आरक्षण से वंचित वर्ग में भी ऐसी प्रतिभा देखने को मिलती है जो अपने बल पर अपनी बुद्धि और विवेक से अच्छी पढाई करते है तथा नौकरी का लाभ पाने के अधिकारी है फिर भी आरक्षण पाने वाले की तुलना में उनका मेरिट में नाम तो आ जाता है किन्तु आरक्षण के अनुसार मेरिट लिस्ट में कम नंबर पाने के बावजूद भी आरक्षण के नाम पर नौकरी दे दी जाती है, यह कैसी समानता है. आरक्षण गलत नहीं है, आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए लेकिन समाज के हर वर्ग को उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए और उनकी प्रतिभा के आधार पर. फिर होगा देश का विकास क्यों कि दिल से किया गया काम हमेशा अच्छा होता है चाहे वह स्वयं के लिए हो या फिर किसी भी उद्देश्य के लिए. आरक्षण के सम्बन्ध में यह आप नया नहीं पढ़ रहे हैं इसके बारे आप सभी को विस्तृत जानकारी होगी लेकिन आरक्षण के नाम पर देश के समान अधिकार से समस्त नागरिको को वंचित रखना उचित नहीं लगता इस पर अवश्य ही विचार किया जाना चाहिए तथा जो वास्तविक रूप से निर्बल हैं उन्हें इसका लाभ दिया जाना चाहिए न की आरक्षण का निर्धारण जातिगत होना चाहिए, क्यों कि जातिगत आरक्षण होने से इसका लाभ नागरिको को नहीं उन सत्ताधारियो को मिलता है जो आरक्षण के नाम पर आपसे वोट लेकर अपना वंशवाद स्तम्भ तैयार कर रहे हैं.
Answer:
सरल शब्दों में, भारत में आरक्षण सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों, और यहां तक कि आबादी के कुछ वर्गों के लिए सीटों तक पहुंच के बारे में है। सकारात्मक कार्रवाई के रूप में भी जाना जाता है, आरक्षण को सकारात्मक भेदभाव के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत में आरक्षण एक सरकारी नीति है, जो भारतीय संविधान द्वारा समर्थित है।
2019 से पहले, आरक्षण मुख्य रूप से सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन (जाति) के आधार पर प्रदान किया गया था। हालाँकि, 2019 में 103 वें संविधान संशोधन के बाद, आर्थिक पिछड़ेपन पर भी विचार किया जाता है। आरक्षण कोटे के अलावा, ऊपरी आरक्षण के लिए अतिरिक्त छूट, अतिरिक्त प्रयास, और निचले कट-ऑफ अंक भी प्रदान किए जाते हैं।
अनुसूचित जातियों (अनुसूचित जातियों), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को सेवाओं में आरक्षण प्रदान करने का उद्देश्य केवल इन समुदायों से संबंधित कुछ व्यक्तियों को नौकरी देना नहीं है। यह मूल रूप से उन्हें सशक्त बनाने और राज्य की निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से है।
Explanation:
Bhai please mark me as brainlist answer