आत्मगौरव samaas vigraha kar k samaas ka bhed likhiye.
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समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे - ‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं। संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है। जर्मन भाषा तथा कई भाषाओं में भी समास का बहुत अधिक प्रयोग होता है।
परिभाषाएँ
समास के भेदसंपादित करें
समास के छः भेद हैं:
अव्ययीभावतत्पुरुषद्विगुद्वन्द्वबहुव्रीहिकर्मधारय
अव्ययीभावसंपादित करें
जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं। जहां एक ही शब्द की बार बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है जैसे - दिनोंदिन, रातोंरात, घर घर, हाथों-हाथ आदि
कुछ अन्य उदाहरण -
आजीवन - जीवन-भरयथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसारयथाशक्ति - शक्ति के अनुसारयथाविधि- विधि के अनुसारयथाक्रम - क्रम के अनुसारभरपेट- पेट भरकरहररोज़ - रोज़-रोज़हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ मेंरातोंरात - रात ही रात मेंप्रतिदिन - प्रत्येक दिनबेशक - शक के बिनानिडर - डर के बिनानिस्संदेह - संदेह के बिनाप्रतिवर्ष - हर वर्षआमरण - मरण तकखूबसूरत - अच्छी सूरत वाली
H अव्ययी समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।परक
तत्पुरुष समाससंपादित करें
'तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है तब
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)
तत्पुरुष समास के प्रकारसंपादित करें
नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहअसभ्यन सभ्यअनंतन अंतअनादिन आदिअसंभवन संभव
कर्मधारय समाससंपादित करें
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे -भवसागर(संसार रूपी सागर);घनश्याम(बादल जैसे काला)
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहचंद्रमुखचंद्र जैसा मुखकमलनयनकमल के समान नयनदेहलतादेह रूपी लतादहीबड़ादही में डूबा बड़ानीलकमलनीला कमलपीतांबरपीला अंबर (वस्त्र)सज्जनसत् (अच्छा) जननरसिंहनरों में सिंह के समान
द्विगु समाससंपादित करें
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहनवग्रहनौ ग्रहों का समूहदोपहरदो पहरों का समाहारत्रिलोकतीन लोकों का समाहारचौमासाचार मासों का समूहनवरात्रनौ रात्रियों का समूहशताब्दीसौ अब्दो (वर्षों) का समूहअठन्नीआठ आनों का समूहत्रयम्बकेश्वरतीन लोकों का ईश्वर
द्वन्द्व समाससंपादित करें
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं योजक चिन्ह लगते हैं , वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- माता-पिता ,भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा
बहुव्रीहि समाससंपादित करें
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहदशाननदश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावणनीलकंठनीला है कंठ जिसका अर्थात् शिवसुलोचनासुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नीपीतांबरपीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्णलंबोदरलंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजीदुरात्माबुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)श्वेतांबरश्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
परिभाषाएँ
समास के भेदसंपादित करें
समास के छः भेद हैं:
अव्ययीभावतत्पुरुषद्विगुद्वन्द्वबहुव्रीहिकर्मधारय
अव्ययीभावसंपादित करें
जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं। जहां एक ही शब्द की बार बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है जैसे - दिनोंदिन, रातोंरात, घर घर, हाथों-हाथ आदि
कुछ अन्य उदाहरण -
आजीवन - जीवन-भरयथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसारयथाशक्ति - शक्ति के अनुसारयथाविधि- विधि के अनुसारयथाक्रम - क्रम के अनुसारभरपेट- पेट भरकरहररोज़ - रोज़-रोज़हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ मेंरातोंरात - रात ही रात मेंप्रतिदिन - प्रत्येक दिनबेशक - शक के बिनानिडर - डर के बिनानिस्संदेह - संदेह के बिनाप्रतिवर्ष - हर वर्षआमरण - मरण तकखूबसूरत - अच्छी सूरत वाली
H अव्ययी समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।परक
तत्पुरुष समाससंपादित करें
'तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है तब
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)
तत्पुरुष समास के प्रकारसंपादित करें
नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहअसभ्यन सभ्यअनंतन अंतअनादिन आदिअसंभवन संभव
कर्मधारय समाससंपादित करें
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे -भवसागर(संसार रूपी सागर);घनश्याम(बादल जैसे काला)
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहचंद्रमुखचंद्र जैसा मुखकमलनयनकमल के समान नयनदेहलतादेह रूपी लतादहीबड़ादही में डूबा बड़ानीलकमलनीला कमलपीतांबरपीला अंबर (वस्त्र)सज्जनसत् (अच्छा) जननरसिंहनरों में सिंह के समान
द्विगु समाससंपादित करें
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहनवग्रहनौ ग्रहों का समूहदोपहरदो पहरों का समाहारत्रिलोकतीन लोकों का समाहारचौमासाचार मासों का समूहनवरात्रनौ रात्रियों का समूहशताब्दीसौ अब्दो (वर्षों) का समूहअठन्नीआठ आनों का समूहत्रयम्बकेश्वरतीन लोकों का ईश्वर
द्वन्द्व समाससंपादित करें
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं योजक चिन्ह लगते हैं , वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- माता-पिता ,भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा
बहुव्रीहि समाससंपादित करें
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -
समस्त पदसमास-विग्रहदशाननदश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावणनीलकंठनीला है कंठ जिसका अर्थात् शिवसुलोचनासुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नीपीतांबरपीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्णलंबोदरलंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजीदुरात्माबुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)श्वेतांबरश्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
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AATMA KI GAURAV
HOLE IT HELPS YOU.
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