आऊवा की कुलदेवी का नाम बताइए।
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ठाकुर कुशाल सिंह, सुगाली माता के परम भक्त थे
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राजस्थान के मारवाड़ का एक छोटा सा कस्बा है आउवा, लेकिन पूरी अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने से इस कस्बे का नाम इतना बड़ा हो गया है कि जब-जब भी देश में आजादी की पहली अलख जगाने वाली 1857 की क्रांति का जिक्र होता है, आउवा के बलिदान को नहीं भुलाया जा सकता.
इस छोटे से कस्बे में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर रखा था. ब्रिटिश हुकूमत ने स्वतंत्रता सेनानियों के गढ़ को खत्म करने के लिए 24 जनवरी 1858 को 120 सैनिकों को गिरफ्तार किया था. 25 जनवरी 1858 को कोर्ट ने 24 स्वतंत्र सेनानियों को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई. उन्हें एक साथ लाइन में खड़ा करके फांसी दे दी गई. यह पहला ऐसा मामला था जिसमें इतने कम समय में किसी को फांसी दी गई हो.
सुरंग बनाकर ध्वस्त किए थे 6 गढ़
स्वतंत्रता सेनानियों के गढ़ को तबाह करने के लिए अंग्रेजों ने कई राजाओं के साथ मिलकर आउवा पर हमला किया था लेकिन, हर बार युद्ध में अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा. बताया जाता है कि ठाकुर कुशाल सिंह, सुगाली माता के परम भक्त थे. उनकी कृपा से अंग्रेजों की मुंह की खानी पड़ती थी. तब अंग्रेज सरकार ने मूर्ति खण्डित कर आऊवा सहित उससे जुड़े छह किलों को सुरंगे बनाकर ध्वस्त किया.
किले पर लटकाया था पॅालिटिकल एजेंट का सिर
आउवा पर हमला करने के लिए जब अंग्रेज पूरी तरह विफल रहे तब उन्होंने जोधपुर के महाराजा की मदद ली. जोधपुर के राजा और अंग्रेज सरकार ने मिलकर आउवा पर हमला किया. उस समय जोधपुर की सेना का पॅालिटिकल एजेंट मॉक मेसन था. उसने आउवा पर हमला करना चाहा पर युद्ध में ठाकुर कुशाल की तलवार के आगे टिक नहीं पाया. मॉक मेसन का सिर काटकर आऊवा के दरवाजे पर लटका दिया गया. फिर कर्नल होम्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 24 जनवरी 1858 को आउवा के किले पर अधिकार कर लिया.
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आवा की कुलदेवी का नाम सुगाली माता था