अहा ! ग्राम्य जीवन nibandh
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अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है? क्यों न इसे सबका मन चाहें?” कवि वर मैथिलीशरण जी गुप्त ने ग्राम की विशेषता अपनी कविता में वर्णित की है। गाँव का जीवन सादा, शहर की तड़क भड़क से भिन्न होता है। ... यह ठीक है कि गाँवों में मनुष्य की आवश्यकताएँ कम हैं।
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