अनुवाद की प्रक्रिया एवं उसके महत्व पर चर्चा कीजिए
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अनुवाद असाधारण रूप से कठिन और आह्वाहनात्मक कार्य माना जाता है। यह एक जटिल, कृत्रिम, आवश्यकता-जनित, और एक दृष्टि से सर्जनात्मक प्रक्रिया है जिसमें असाधारण और विशिष्ट कोटि की प्रतिभा की आवश्यकता होती है। यह इसकी अपनी प्रकृति है। परन्तु माना जाता है कि मौलिक लेखन न होने के कारण अनुवाद को सम्मान का स्थान नहीं मिलता है। क्योंकि इस बात की अवगणना होती है कि अनुवाद इसीलिए कठिन है कि वह मौलिक लेखन नहीं-पहले कही गई बात को ही दुबारा कहना होता है, जिसमें अनेक नियन्त्रणों और बन्धनों का पालन करना आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार अमौलिक होने के कारण अनुवाद का महत्त्व तो कम हो गया, परन्तु इसी कारण इसके लिए अपेक्षित नियन्त्रणों और बन्धनों को महत्त्वपूर्ण नहीं समझा गया।
अनुवाद का महत्व :-
बीसवीं सदी को अनुवाद का युग कहा गया है। यद्यपि अनुवाद सबसे प्राचीन व्यवसाय या व्यवसायों में से एक कहलाता है तथापि उसके जो महत्त्व बीसवीं सदी में प्राप्त हुआ वह उससे पहले उसे नहीं मिला ऐसा माना जाता है। इसका मुख्य कारण माना गया है कि बीसवीं शताब्दी में ही भाषासम्पर्क अर्थात् भिन्न भाषाभाषी समुदायों में सम्पर्क की स्थिति प्रमुख रूप से आरम्भ हुई। इसके मूल कारण आर्थिक और राजनीतिक माने जाते हैं। फलस्वरूप, विश्व का आर्थिक-राजनीतिक मानचित्र परिवर्तित होने लगा। वर्तमान यग में अधिकतर राष्ट्रों में यदि एक भाषा प्रधान है तो एक या अधिक भाषाएँ गौण पद पर दिखाई देती हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही राजनीतिक-प्रशासनिक इकाई की सीमा के अन्तर्गत भाषायी बहुसंख्यक भी रहते हैं और भाषायी अल्पसंख्यक भी। लोकतन्त्र में सब लोगों का प्रशासन में समान रूप से भाग लेने का अधिकार तभी सार्थक माना जाता है, जब उनके साथ उनकी भाषा के माध्यम से सम्पर्क किया जाए। इससे बहुभाषिकता की स्थिति उत्पन्न होती है और उसके संरक्षण की प्रक्रिया में अनुवाद कार्य का आश्रय लेना अनिवार्य हो जाता है। इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक, तथा साहित्यिक और सांस्कृतिक स्तर पर बढ़ते हुए आदान-प्रदान के कारण अनुवाद कार्य की अनिवार्यता और महत्ता की नई चेतना प्रबल रूप से विकसित होती हुई दिखती है। अतः अनुवाद एक व्यापक तथा बहुधा अनिवार्य और तर्कसंगत स्थिति मानी जाती है।
अनुवाद के महत्त्व को दो भिन्न, परन्तु सम्बन्धित सन्दर्भो में अधिक स्पष्टता से समझया जाता है : (क) सामाजिक एवं व्यावहारिक महत्त्व, (ख) शैक्षणिक एवं ज्ञानात्मक महत्त्व।
अनुवादक का कार्य स्रोतभाषा के पाठ को अर्थपूर्ण रूप से लक्ष्यभाषा में अनूदित करता है। अनुवाद का कार्य अन्ततोगत्वा एक ही व्यक्ति करता है । एकाकी अनुवाद में तो अनुवादक अकेला होता ही है, सहयोगात्मक अनुवाद में भी, अन्तिम भाग में, सम्पादन का काम अनुवादक को अकेले करना होता है। अतः अनुवादक के साथ अनेक दायित्व जुड़ जाते हैं और कार्य के सफल निष्पादन में उससे अनेक अपेक्षाएं रहती हैं । भाषा ज्ञान, विषय ज्ञान, अभिव्यक्ति कौशल, व्यक्तिगत गुण आदि की दृष्टि से अनुवादक से होने वाली अपेक्षाओं पर विचार करना होता है ।
एक अच्छा अनुवादक वह है जो :-
1. स्रोत भाषा (जिससे अनुवाद करना है) के लिखित एवं वाचिक दोनों रूपों का अच्छा ज्ञाता हो।
2. लक्ष्य भाषा ((जिसमें अनुवाद करना है) के लिखित रूप का अच्छा ज्ञाता हो,
3. पाठ जिस विषय या टॉपिक का है, उसकी जानकारी रखता हो।
Explanation:
अनुवाद की प्रकिया और महत्व पर प्रकाश डालिये