ann ki atmakatha ke bare main article
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मैं अन्न हूं। भारत में मुझे अन्न-देवता भी कहा जाता है। मुझसे ही स्वास्थ्य वृद्धि होती है। अमीर, गरीब, बच्चे, बूढ़े, जवान सभी को मेरी जरूरत होती है। मेरे कई रूप होते हैं। मैं भोजन के रूप में खाया जाता हूं, मुझसे ही रक्त बनता है और मै शरीर में ताकत के रूप में विद्यमान होता हूं। यदि मैं कुछ दिन मनुष्य को ना मिलूं तो मनुष्य जी नही पायेगा। मुझे अनेक रूपों में खाया जाता है जिससे चावल, दाल, खिचड़ी, रोटी, ब्रेड और मिठाई आदि हैं।
मेरा जन्मदाता किसान होता है वह मुझे बड़ी मेहनत से खेतों में उगाता है। मैं अनाज के रूप में बाजार में बेचा जाता हूं। फिर आटे और चावल के रूप में आपके घरों तक तक पहुंचता हूं। मुझसे कई तरह के पकवान और मिठाइयां भी बनती हैं। उनको देखकर सभी के मुंह में पानी आ जाता है। जहां मुझे से पूरी, कचोरी, समोसे आदि बनाए जाते हैं तो वही मुझसे खिचड़ी और खीर भी बनाये जाते हैं।
मुझे तब दुख होता जब मैं देखता हूँ कि मुझे जूठा छोड़ा दिया जाता है। मुझे बेकार फेंका जाता है। कितने ऐसे गरीब लोग हैं जिन्हें मैं दो वक्त तो क्या एक वक्त भी ढंग से नसीब नही होता हूँ। वे मेरे दाने-दाने को मोहताज रहते हैं। लोग अमीर लोग मेरा सम्मान करना सीख जाये और व्यर्थ में मेरी बर्बादी न करें तो मैं सबको नसीब होऊँ। यदि सब मिल-बांट कर खाना सीख जायें तो मेरे अभाव में कोई भूखा न मरे।
बस यही सीख मैं लोगों को देना चाहता हूँ। मेरा सम्मान करें, मेरा मूल्य समझें। मैं अन्न हूँ। मैं सबका जीवन दाता हूँ।