Anuchad on pashu bhi prem ki bhasha samajhte hain
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पशु संप्रेषण क्यों करते हैं? अपने क्षेत्र को निर्धारित करने, भोजन तथा पानी बाँटने, स्तर स्थापित करने, चेतावनी देने, प्रवास के मार्गों हेतु समन्वय करने, सखा को रिझाने और अपने प्रतिद्वंद्वियों को हतोत्साहित करने के लिए। मानव के समान ही उनका जीवित रहना इस पर ही निर्भर करता है।
प्रकाश का उपयोग करने वालों में बिना रीढ़ वाले पशु तथा मछलियाँ शामिल हैं। झींगे एक-दूसरे को पीली-हरी रोशनी से संकेत देते हैं। किसी एक ट्रॉपिकल मैन्टिस झींगे पर चमकने वाला पीला निशान किसी दूसरे मैन्टिस झींगे को 40 मीटर दूर से भी दिख जाता है। नर जुगनू लगातार कुछ 'मार्स' डॉट चमकाता है। मादा ठीक दो सेकंड पश्चात चमकाकर उसका जवाब देती है।नर एकदम सटीक समय अंतराल पर छो़ड़ी गई रोशनी के पीछे जाता है। मादा जुगनू इस पैटर्न को समझ लेती है और एक लुभावना संदेश छोड़ती है। शक न करने वाला नर वहाँ पहुँचकर पाता है कि वह कोई प्रेमी नहीं बल्कि भक्षक है।
रंग पशु संचार का एक अभिन्न भाग है। गाढ़े रंग वाले कीड़े अकसर जहरीले होते हैं। मक्खियों तथा सिन्दूरी मॉथ कैटरपिलर की काली तथा पीली धारियाँ संभावित भक्षकों को सचेत कर देती हैं। कुछ मेंढ़क खतरा होने पर चमकीले रंग के पेट को दिखाने लगते हैं। सामना किए जाने पर नर कटलफिश के मुख का रंग बदलने लगता है। यदि यह हलके रंग का है तो वह लड़ाई नहीं करेगा और यदि उसका रंग गाढ़ा है तो वह लड़ाई करेगा।
रीढ़ वाले पशु मुख के हाव-भाव तथा शरीर की मुद्राओं का मिलाकर उपयोग करते हैं। कोई हिंसक पशु अपने को ब़ड़ा कर लेता है- पीछे की ओर तनकर बाल खड़े करके, पंख फैलाकर गले की थैली को फुलाकर सिर फैलाकर। एक गुस्से वाला गोरिल्ला अपनी जीभ बाहर निकालता है।
इसके विपरीत एक विनीत पशु अपने को सिकोड़ लेता है और जमीन पर रेंगने लगता है। कुत्ता अपने आगे के पैरों को मोड़कर अपनी कोहनियों पर आराम करते हुई अपने पिछले भाग को ऊँचा उठा लेता है और उसका सिर ऊपर की ओर लहरा रहा होता है जो खेलने के लिए समय का संकेत होता है। एक ऐसी क्रिया जो लोमड़ियों तथा भेड़ियों में भी होती है।
शेर के बच्चे भी आपसे लड़ाई का खेल खेलते हैं जिसमें वे वयस्कों द्वारा आवश्यक होने वाले कौशलों की नकल करते हैं। आपस में खेलने वाले पशु अपने धीमे हाव-भाव और छिपाए गए पंजों से यह बताते हैं कि वे खेल-खेल में ऐसा कर रहे हैं।
शिकार करते समय भेड़िया अपनी रणनीति का संकेत देता है। पूँछ की स्थिति यह बताती है कि पीछा करना है और वापस लौटना है, उसे हिलाया जाना तात्कालिकता को दर्शाता है। खरगोशों की तरह सफेद पूँछ वाले हिरण अपनी पूँछ को लहराकर खतरे का संकेत देते हैं। पानी की चि़ड़िया अपने सिर को हिलाकर अथवा ठोड़ी को उठाकर उड़ने की मंशा को संप्रेषित करती है, ताकि समूचा झुंड एक साथ उड़े।
मधुमक्खी को अपने उड़ने के नृत्य की आवाज मकरन्द की दूरी तथा दिशा बताती है। उनकी जानबूझकर की जानी वाली दौ़ड़ तथा मोड़ भोजन के संबंध में सूर्य की स्थिति से सीधे संबंधित होती है। उदाहरण के लिए 6 से 12 बजे तक मधुमक्खी की दौड़ का अर्थ है कि भोजन सूर्य की दिशा में है। उनके नृत्य की गति भोजन से दूरी को बताती है, न कि छत्ते से दूरी को। न केवल यह नृत्य भोजन की मौजूदगी के बारे में बताता है, बल्कि इसके प्रकार के बारे में भी बताता है।
सुनाई देने वाला संचार आवाज के द्वारा ही होना आवश्यक नहीं है। किसी खतरे का संकेत बीवर अपनी पूँछ को जोर से मारकर, दीमक अपने सिर को घोसले की सामग्री में खटखटाकर और कंगारू अपनी पिछली टाँगों को बजाकर देते हैं। संकेत देने का एक और तरीका स्ट्रीड्यूलेशन है- वह आवाज जो कीड़ों के मध्य अपने कुछ शरीर के भागों को आपस में रगड़कर उत्पन्न की जाती है।
नर झिंगुर अपने आगे के पंखों को आपस में रगड़कर संकेत देता है। प्रत्येक स्ट्रोक से एक आवाज निकलती है जिसकी समूची श्रृंखला एक ऐसा संकेत बना देती है जो साथ-साथ संदेश भेजती है मादाओं को आमंत्रित करने का और प्रतिस्पर्धी को दूर भगाने का। कुछ हमिंग बर्ड की फुसफुसाहट तथा सीटियाँ उनके पीछे के पंखों से उत्पन्न होती हैं।
हाथियों का संचार वास्तव में जटिल है। आपस में जुड़ी हुई सूंडें दोस्ती दर्शाती हैं जबकि सूंड उठाकर चिल्लाना और कानों को फड़फड़ाना खतरे का संकेत देते हैं। ये लंबी दूरी पर संचार हेतु भूकम्पीय संकेतों का भी उपयोग करते हैं। जोर से पैर पटकने पर भूमि में ऐसी तरंगें उत्पन्न होती हैं जो कि लगभग 20 मील तक जा सकती हैं। हाथियों के पैर खतरों के इन संकेतों को पहचान लेते हैं।
अन्य पशु जो भूकम्पीय कंपनों के द्वारा संप्रेषण करते हैं उनमें सुनहरा मोल, हाथी सील तथा कई प्रकार के कीड़े, मछलियाँ तथा रेंगने वाले जीव शामिल होते हैं। नर वूल्फ मकड़ी प्रेम हेतु प्रस्ताव में दृश्य तथा कंपन दोनों संकेतों का उपयोग करते हैं।
पशुओं का संचार अंतर-प्रजाति तथा अंतरा-प्रजाति दोनों होता है। जिस जीव के लिए वह संदेश अपेक्षित होता है वह संचार के तरीके को समझ लेता है। हम मानते थे कि मानव अनूठे होते हैं। अब लिखित भाषा ही हमारी एकमात्र विशिष्ट विशेषता है और किसी दिन अनुसंधानकर्ता दर्शाएँगे कि पशुओं के पास भी यह समर्थता होती है। (