Anuched on parishram hi sakta ki kunji hai
Sanket bindu;
1; parishram v bhagya
2; parishram v saflta
3; parishram sharirik v mansik
4; parishram ke labh
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ऊंची सोच, कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय ही किसी विद्यार्थी को सफलता की ओर ले जाते हैं। शरीर कमजोर हो जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन मन कभी कमजोर मत होने देना। व्यक्ति के विचार, उसकी दृष्टि कई बार उसके जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करती हैं। चूंकि जितने भी महापुरुष हुए हैं, वह शरीर से बेशक दुबले-पतले और कमजोर रहे हों, लेकिन उनका मन बड़ा मजबूत था। महात्मा गांधी इसका सशक्त उदाहरण हैं। शिक्षा और साक्षरता को बचाने के साथ संस्कार को भी बचाना जरूरी है क्योंकि यदि शिक्षा के साथ संस्कार जुडे़ हों तो अध्ययन के साथ प्रतिष्ठा भी स्वत: जुड़ जाती है। जो लोग इन बातों को अपने जीवन में उतार लेते हैं, ऐसे लोग अपने नगर के नाम से नहीं बल्कि उनके नाम से नगर जाना जाता है। शिक्षा से व्यक्ति विनम्र बनता है और विनम्रता ही किसी व्यक्ति को महान बनाती है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आज के युवाओं को कड़ी मेहनत करनी होगी। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। हम जितनी भी वस्तुओं का उपयोग करते हैं उसके पीछे किसी न किसी की मेहनत होती है। आज के युवाओं को परिश्रम से नहीं घबराना चाहिए। मन लगा कर यदि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जुट लाएं कामयाबी जरूर मिलती है।
परिश्रम के साथ मंजिल तक पहुंचने का जुनून भी होना चाहिए। मंजिल तक पहुंचने के लिए उसका रास्ता और तरीका भी हमे सीखना होता है। इसके लिए एक अच्छे गुरू और मार्ग दर्शक की जरूरत होती है। जो हमे सही और गलत का भेद बताकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेहनत के दौरान हमें ध्यान नहीं भटकाना चाहिए। युवास्था मनुष्य के जीवन का स्वर्णिम काल होता है। मनुष्य में सबसे ज्यादा ऊर्जा इसी अवस्था में होती है और उसके लिए कोई भी चीज मुश्किल नहीं होती। ऎसे में चंचल मन यहां-वहां भटकता है इसी को नियंत्रित कर युवाओं को अपना मन को साध कर लक्ष्य की ओर भटकना चाहिए।
युवाओं को अपने समय का उपयोग कर अपने साथ परिवार और देश के लिए कुछ करने का समय है आज विश्व में सबसे ज्यादा युवा भारत में ही है। आज के युवाओं के कारण ही आज पूरा विश्व भारत की ओर निहार रहा है। व्यक्ति से समाज और समाज से देश का विकास होता है। इसलिए युवाओं को सफलता के लिए मेहनत से नहीं घबराना चाहिए। कहते हैं- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। यही बात मनुष्य जीवन के संदर्भ में भी लागू होती है। व्यक्ति के विचार, उसकी दृष्टि कई बार उसके जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करती हैं। यदि जीवन में हम सकारात्मक सोच रखें, तो सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। विपरीत परिस्थितियों को भी हम अनुकूल बना सकते हैं, बशर्ते हमारी दृष्टि नकारात्मक न हो। नकारात्मक सोच मनुष्य को मन व शरीर से निर्बल बना देती है। वहीं सकारात्मक सोच के बगैर व्यक्ति सामर्थ्यहीन हो जाता है। सकारात्मक दृष्टि मनुष्य में अनंत ऊर्जा का समावेश कर उसे सद्प्रेरणा तो दे ही सकती है, साथ ही यह साधना की अनंत यात्रा में भी सहयोगी बनती है। सकारात्मक दृष्टि से व्यक्ति के अंदर संघर्ष करने की शक्ति पैदा होती है जो मनुष्य को हार न मानने और इस जीवन क्षेत्र में लगातार जूझने की प्रेरणा देती है। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ-साथ पुरुषार्थ और आध्यात्मिक विचारों का होना भी नितांत आवश्यक है। सकारात्मक दृष्टिकोण के सहारे व्यक्ति निर्भीक, निरहंकार और निस्वार्थ होकर राष्ट्र साधना में सदैव तत्पर रह सकता है। सभी रुकावटों और विपरीत परिस्थितियों के साथ तमाम विघ्न-बाधाओें को पार करने के लिए हममें उत्साह और ऊर्जा का लगातार बने रहना भी आवश्यक है।
हमारी दृष्टि तभी व्यापक हो सकती है, जब हम समाज के हर एक वर्ग को एक साथ जोड़ पाएंगे और साथ रख पाएंगे तभी समाज के हर घटक को आध्यात्मिकता में पिरोकर वैचारिक और सामाजिक क्रांति घटित कर सकेंगे। इस व्यापक व सकारात्मक दृष्टि को धारण कर आचार्य चाणक्य, समर्थगुरु रामदास, डॉ बाबा साहेब अंबेडकर आदि अनेक महापुरुषों ने समाज को नई दिशा दी। इसी तरह हम सबको अपनी दृष्टि को स्वयं तक सीमित नहीं रखना चाहिए। सकारात्मक दृष्टि को व्यापक बनाकर ही हम समुचित रूप से आत्म-कल्याण, राष्ट्रकल्याण और विश्व कल्याण कर सकते हैं।
परिश्रम के साथ मंजिल तक पहुंचने का जुनून भी होना चाहिए। मंजिल तक पहुंचने के लिए उसका रास्ता और तरीका भी हमे सीखना होता है। इसके लिए एक अच्छे गुरू और मार्ग दर्शक की जरूरत होती है। जो हमे सही और गलत का भेद बताकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेहनत के दौरान हमें ध्यान नहीं भटकाना चाहिए। युवास्था मनुष्य के जीवन का स्वर्णिम काल होता है। मनुष्य में सबसे ज्यादा ऊर्जा इसी अवस्था में होती है और उसके लिए कोई भी चीज मुश्किल नहीं होती। ऎसे में चंचल मन यहां-वहां भटकता है इसी को नियंत्रित कर युवाओं को अपना मन को साध कर लक्ष्य की ओर भटकना चाहिए।
युवाओं को अपने समय का उपयोग कर अपने साथ परिवार और देश के लिए कुछ करने का समय है आज विश्व में सबसे ज्यादा युवा भारत में ही है। आज के युवाओं के कारण ही आज पूरा विश्व भारत की ओर निहार रहा है। व्यक्ति से समाज और समाज से देश का विकास होता है। इसलिए युवाओं को सफलता के लिए मेहनत से नहीं घबराना चाहिए। कहते हैं- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। यही बात मनुष्य जीवन के संदर्भ में भी लागू होती है। व्यक्ति के विचार, उसकी दृष्टि कई बार उसके जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करती हैं। यदि जीवन में हम सकारात्मक सोच रखें, तो सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। विपरीत परिस्थितियों को भी हम अनुकूल बना सकते हैं, बशर्ते हमारी दृष्टि नकारात्मक न हो। नकारात्मक सोच मनुष्य को मन व शरीर से निर्बल बना देती है। वहीं सकारात्मक सोच के बगैर व्यक्ति सामर्थ्यहीन हो जाता है। सकारात्मक दृष्टि मनुष्य में अनंत ऊर्जा का समावेश कर उसे सद्प्रेरणा तो दे ही सकती है, साथ ही यह साधना की अनंत यात्रा में भी सहयोगी बनती है। सकारात्मक दृष्टि से व्यक्ति के अंदर संघर्ष करने की शक्ति पैदा होती है जो मनुष्य को हार न मानने और इस जीवन क्षेत्र में लगातार जूझने की प्रेरणा देती है। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ-साथ पुरुषार्थ और आध्यात्मिक विचारों का होना भी नितांत आवश्यक है। सकारात्मक दृष्टिकोण के सहारे व्यक्ति निर्भीक, निरहंकार और निस्वार्थ होकर राष्ट्र साधना में सदैव तत्पर रह सकता है। सभी रुकावटों और विपरीत परिस्थितियों के साथ तमाम विघ्न-बाधाओें को पार करने के लिए हममें उत्साह और ऊर्जा का लगातार बने रहना भी आवश्यक है।
हमारी दृष्टि तभी व्यापक हो सकती है, जब हम समाज के हर एक वर्ग को एक साथ जोड़ पाएंगे और साथ रख पाएंगे तभी समाज के हर घटक को आध्यात्मिकता में पिरोकर वैचारिक और सामाजिक क्रांति घटित कर सकेंगे। इस व्यापक व सकारात्मक दृष्टि को धारण कर आचार्य चाणक्य, समर्थगुरु रामदास, डॉ बाबा साहेब अंबेडकर आदि अनेक महापुरुषों ने समाज को नई दिशा दी। इसी तरह हम सबको अपनी दृष्टि को स्वयं तक सीमित नहीं रखना चाहिए। सकारात्मक दृष्टि को व्यापक बनाकर ही हम समुचित रूप से आत्म-कल्याण, राष्ट्रकल्याण और विश्व कल्याण कर सकते हैं।
rajawatkuldeep1:
This is too big I just want 100 words but thanks for help
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