Anuchhed lekhan on Mitrta
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मानव सभ्यता के इतिहास में दोस्ती या मित्रता (Friendship) की कई मिसाले दी जाती है। कृष्ण और सुदामा की मित्रता को कोन नही जानता है। एक तरफ द्वारका के राजा श्रीकृष्ण और दूसरी तरफ भिक्षा मांगकर गुजारा करने वाले सुदामा की कहानी हर बच्चे बच्चे को पता है। श्रीकृष्ण ने बचपन के मित्र सुदामा से दोस्ती को हमेशा निभाया था। पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चन्द्रवरदाई की कहानी भी काफी प्रचलित है। दुनिया में मौजूद हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का दोस्त है, अगर यह भावना सभी इंसानों में आ जाए तो “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की मूल भावना परिपूर्ण हो जाएगी।
दोस्ती एक अनमोल धन के भांति होती है जो समय आने पर आपकी मदद करता है। सच्ची मित्रता निःस्वार्थ होती है जिसमें किसी का कोई स्वार्थ नही छिपा होता है। मित्रता ना जाति देखती है और ना ही धर्म, वो केवल विश्वास और प्रेम की भूखी होती है। मित्रता किसी के भी बीच हो सकती है। चाहे वो किसी भी धर्म या जाति के मानने वाले हो। स्त्री पुरुष हो या लड़का लड़की हो, मित्रता की कोई बंदिश नही है। एक अमीर भी किसी गरीब का मित्र हो सकता है।
इंसान एक सामाजिक प्राणी है जिसे बंधन की आस होती है। यह बंधन प्रेम, विश्वास, जिम्मेदारी का होता है। दोस्ती भी एक विश्वास का बंधन है और जो सच्ची दोस्ती होती है, वह अटूट बंधन से युक्त होती है। दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो उम्र के बंधनों से परे होता है। समाज में जीवन व्यतीत करते हुए कई व्यक्ति आपके सम्पर्क में आते है जिनमे कोई सच्चा होता है तो कोई झूठा। यह आप पर निर्भर है कि सच्चे दोस्त की परख कैसे करते है।
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मित्रता अनमोल धन है। इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है। हीरे-मोती या सोने-चाँदी से भी नहीं। मैत्री की महिमा बहुत बड़ी है। सच्चा मित्र सुख और दुख में समान भाव से मैत्री निभाता है। जो केवल सुख में साथ होता है, उसे सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता। साथ-साथ खाना-पीना, सैर, पिकनिक का आनंद लेना सच्ची मित्रता का लक्षण नहीं। सच्चा मित्र तो दीर्घ काल के अनुभव से ही बनता है। सच्ची मित्रता की बस एक पहचान है और वह है-विचारों की एकता। विचारों की एकता ही इसे दिनोंदिन प्रगाढ़ करती है। सच्चा मित्र बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है।
जहाँ थाह न लगे, वही बाँह बढ़ाकर उबार लेता है। मित्रता करना तो आसान है, लेकिन निभाना बहुत ही मुश्किल। आज मित्रता का दुरुपयोग होने लगा है। लोग अपने सीमित स्वार्थों की पूर्ति के लिए मित्रता का ढोंग रचते हैं। मित्र जो केवल काम निकालना जानते हैं, जो केवल सख के साथी हैं और जो वक्त पड़ने पर बहाना बनाकर किनारे हो जाते हैं.
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