Hindi, asked by Anonymous, 1 year ago

Any 2 poems in HINDI on bride

Dulhan ke upar 2 kavitaayen. Plz tell as soon as possible

Answers

Answered by zesta
0
1
दुल्हन बन चली हूँ 
आँखों में लाखों सपने 
दिल में उम्मीदों के दिये जलाये 
दुल्हन बन तैयार बैठी हूँ 
बचपन से खेल खेल 
गुड्डे और गुड़िया की शादी का 
पिया की अर्धाग्नी बन चली
दुल्हन बन चली हूँ 

दिल में उलझन लाखों 
मन ही मन घबराये 
नये रिश्तों से बंधना है 
नये रीति रिवाजों को सीखना है 
दुल्हन बन चली हूँ

खुबसूरत है वो एहसास 
माँ पापा से दूर होने का गम 
आँखों में नमी दिल में उलझन है 
दुल्हन बन चली हूँ

2
कल तक था जो फूल बाग़ का ….
उसपर ओस की बूंदों का कहर ढाया ,
दिखने में वो लगता खूबसूरत ,
लेकिन मन ही मन कहीं मुरझाया ।
नादान सी चिड़िया थी वो कल तक …..
अपने बाबुल के नीड़ में ,
कुछ घंटों में ही बदल गयी दुनिया ,
पहुँची जब दूजे की दहलीज़ में।
कल जो कहलाती थी “लड़की”,
आज कहलाने लगी वो “औरत”,
“दुल्हा” भी तो “लड़का” था लेकिन ,
उसके लड़कपन से … न हो किसी को हैरत ।
“बहु” के लिए सब मायने बदले ,
जल्दी उठने के फबते सब कसते ,
सारे घर के सौंप के काम …..
सास कहे- “अब मिला मुझे आराम”।
बेटे की “मर्दानगी ” …..हरदम रहे सर पर ,
बीवी नहीं ……..वो लाया है नौकर ,
काम ख़तम हो जब घर का पूरा ,
बचा तब काम, “पति का मन” भरने का अधूरा ।
मेहमानों के आवभगत की चाकरी ,
सबके सामने खूंटे से बंधी बकरी ,
रह-रह कर “उसको” सब ताने कसते ….
कि क्यूँ नहीं सिखाये, मायके वालों ने निभाने रिश्ते ?
उसके दर्द को किसी ने न जाना ,
कि क्या चाहती है “वो” ससुराल वालों से पाना ?
पैसे धन का लोभ नहीं उसको ,
सिर्फ “सम्मान” की चाहत पल भर को ।
सदियों से चला आ रहा है …. “ससुराल” भारत का ,
जहाँ पुरुष प्रधान होता है ….हर ताक़त का ,
स्त्री का विरोध होता नहीं …. मंज़ूर जहाँ पर ,
लांघे गर वो सीमाएं तो  दिया ….घर से निकाल यहाँ पर ।
आजकल “शादी” बन गयी है सिर्फ “पैसों” का लोभ ,
दहेज़ सज़ा अपने घर में …लें दुल्हन से प्रतिशोध ,
दूसरे की “बेटी” को बना देते हैं ……”किसान”,
जो खेत जोते दिन-रात, ताकि “साहूकार” के हो पूरे “दाम”।
कल भी “औरत” त्रस्त थी ……आज भी त्रस्त है ,
कल नए विचारों को समझने की कमी थी ,
आज उन विचारों को समझ कर ….
कुचल देने की परम्परा प्रचलित है ।
समझना होगा “बुजुर्गों” को भी अब ……..
कि बहु भी अभी “नासमझ और नादान ” है ,
एक “चिड़िया” थी कल किसी के बाग़ की ,
जो सजाने आयी अब “गुलिस्तान” है ।।


hope this helps









Answered by ruchisr123
0
दुल्हन बन चली हूँ 
आँखों में लाखों सपने 
दिल में उम्मीदों के दिये जलाये 
दुल्हन बन तैयार बैठी हूँ 
बचपन से खेल खेल 
गुड्डे और गुड़िया की शादी का 
पिया की अर्धाग्नी बन चली
दुल्हन बन चली हूँ 

दिल में उलझन लाखों 
मन ही मन घबराये 
नये रिश्तों से बंधना है 
नये रीति रिवाजों को सीखना है 
दुल्हन बन चली हूँ

खुबसूरत है वो एहसास 
माँ पापा से दूर होने का गम 
आँखों में नमी दिल में उलझन है 
दुल्हन बन चली हूँ

ruchisr123: pls mark as brainliest ans
ruchisr123: plssssssssssssssssssss
Similar questions