अपूर्ण होते हुए भी गोल गुम्बद को इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला का भव्य एवं अनूठा प्रतीक क्यों माना जाता है?
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अपूर्ण होते हुए भी गोल गुम्बद को इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला का भव्य एवं अनूठा प्रतीक क्यों माना जाता है?
उत्तर: गोल गुम्बद कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित है| यह गुम्बद बीजापुर के आदिलशाही राजवंश (1489-1686ई०) के सातवें सुल्तान मुहम्मद आदिलशाह (1626-56 ई०) का मकबरा है| इसे स्वयं सुल्ल्तन ने अपने जीवन काल में बनवाना शुरू किया था| इसका काम पूरा ना होने के बाबजूद भी यह एक शानदार इमारत है| मकबरे में की छोटी-बड़ी इमारतें है , जैसे भीतर आने के लिए एक विशाल वर्गाकार भवन है जिस पर एक गोलाकार ढोल है और ढोल पर एक शानदार गुबंद टिका हुआ है जिसके कारण उसे यह नाम दिया गया| यह गहरे स्टील रंग के बेलास्ट पत्थर से बना है और इसे पलस्टर से सँवारा गया है|
इस में एक मकबरे का एक बड़ा कक्ष है और 1.25 फुट व्यास वाला गुबंद है यह मकबरा 18337 वर्ग फुट में फैला हुआ है और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मकबरा है| मकबरे के बड़े कक्ष में सुल्तान उसके बेगमों और रिश्तेदारी की कब्रगाह है उनकी असली कब्र नीचे तहखाने में है| इस ईमारत में एक आश्चर्यजनक ध्वनि बनी है , जहाँ धीरे-धीरे बोली गई आवाज़ कई गुणा तेज हो जाती है और उसकी प्रतिध्वनि कई बार गूंजती है इसलिए इस गुबंदको एक अनूठा प्रतीक माना जाता है|
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भारतीय कला का परिचय कक्षा -11
पाठ-8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू
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