| अपनी किसी एक शरारत के बारे में एक अनुच्छेद
लो ।
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अपनी किसी एक शरारत के बारे में एक अनुच्छेद लो।
आज मैं आपको अपने बचपन की एक शरारत के बारे में बताने जा रही हूँ | एक बार जब मेरी माता जी का जन्मदिन था तो मैंने और मेरे भाई नें उनका जन्म दिन मनाने का फैसला किया और इसे एक शरारत का रूप देने की भी ठानी| तब हमने उनके लिए एक डिब्बे में तौफा पैक किया और और उसे इस तरह पैक किया कि हर डिब्बे में एक छोटा डिब्बा था और इस तरह तकरीबन 20 डब्बे का उपहार बन गया। जब साँय काल में हम सब उनका जन्मदिन मनाने लगे तो सब सगे संबंधियों ने भी अपने-अपने उपहार देने शुरू किए, तब हमने अपना उपहार का डिब्बा उन्हें थमा दिया और माँ डिब्बा खोलने लगी और फिर शुरू हुआ हास्य का पिटारा। माँ एक डिब्बा खोलती, तो दूसरा निकलता और इस तरह माँ ने 19 डिब्बे खोल दिये, लेकिन उपहार नहीं निकला।माँ बहुत नाराज़ हुई और इस शरारत कि वजह से सब लोग उन पर हंस रहे थे लेकिन जैसे ही बिसवां डिब्बा खुला, उसमें माँ को हम दोनों की एक बचपन की फोटो मिली तो वो बहुत खुश हुई और हमें गले से लगा लिया। इस शरारत से हमें डांट तो मिली लेकिन बाद में माँ का अनमोल स्नेह भी मिला।