अपने परिवार से तातुश के घर के सफर में लेखिका के सामने रिश्तों की कोनसी सच्चाई सामने आती है।
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ԹՌՏաeՐ
परिवार से तातुश के घर के सफ़र में बेबी को रिश्तों के कई कड़वे और मीठे अनुभव हुए। उसे रिश्तों की सच्चाई का अनुभव हुआ। अपने पति का घर छोड़ने के बाद वह अकेली और असहाय थी परंतु उसके परिवार वालों ने उसकी कोई सहायता नहीं की, यहाँ तक कि उसे माँ की मृत्यु का समाचार भी छह महीने बाद दिया गया। बेबी को बाहरी लोगों सुनील ने काम दिलवाने में, घर से बेघर होने में भोला दा ने और तातुश ने तो उसे बेटी का दर्जा दिया उसे प्रोत्साहित कर लेखिका बनाने में सहायता की। तातुश के सभी आत्मीय जनों ने बेबी का हर समय उत्साह बढ़ाने में उसकी हरसंभव सहायता की। इस प्रकार बेबी को यह ज्ञान हुआ कि रिश्ते की डोर रक्त संबंध से अधिक स्नेह और अपनेपन से बँधी होती है।
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परिवार से तातुश के घर के सफ़र में बेबी को रिश्तों के कई कड़वे और मीठे अनुभव हुए। उसे रिश्तों की सच्चाई का अनुभव हुआ। अपने पति का घर छोड़ने के बाद वह अकेली और असहाय थी परंतु उसके परिवार वालों ने उसकी कोई सहायता नहीं की, यहाँ तक कि उसे माँ की मृत्यु का समाचार भी छह महीने बाद दिया गया। बेबी को बाहरी लोगों सुनील ने काम दिलवाने में, घर से बेघर होने में भोला दा ने और तातुश ने तो उसे बेटी का दर्जा दिया उसे प्रोत्साहित कर लेखिका बनाने में सहायता की। तातुश के सभी आत्मीय जनों ने बेबी का हर समय उत्साह बढ़ाने में उसकी हरसंभव सहायता की। इस प्रकार बेबी को यह ज्ञान हुआ कि रिश्ते की डोर रक्त संबंध से अधिक स्नेह और अपनेपन से बँधी होती है।