अपठित गद्यांश
इस संसार को कर्मक्षेत्र कहा गया है, सारी सृष्टि कर्मरत है। छोटे-से-छोटे प्राणी भी प्रकृति के साम्राज्य में कही
भी अकरण्यता के दर्शन नहीं हो रहे है। सूर्य,चंद्र,पृथ्वी,गृह-नक्षत्रादि निरंतर गतिशील है।
नियमानुकूल सूर्योदय होता है और सूर्यास्त तक किरणें प्रकाश बिखेरती रहती है। रात्रि काली न आकाश में तारावलि
तथा नक्षत्रावलि का सौंदर्य विहँस उठता है। क्रमशः बढ़ती-घटती चंद्रकला के दर्शन होते हैं। इसी तरह विभिन्न
ऋतुओं का चक्र अपनी धुरी पर चलता रहता है। नदियाँ अविरल गति से बहती रहती हैं। पेड़ पौधे, पशु-पक्षी सबके
जीवन में सक्रियता है
।।
है
प्र.1- प्रकृति की किन वस्तुओ द्वारा सक्रियता का संदेश मिलता है
प्र.2- संसार को कर्मक्षेत्र कहे जाने से लेखक का क्या आशय है
प्र.3- गयाँश का उचित शीर्षक लिखिए।
प्र.4- सूर्योदय का संधि-विच्छेद कीजिए।
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- सूर्य, चंद्र, धरती ।
- लेखक का आशय यह है की संसार अपने गति से चलता है ।
- संसार की गति ।
- सूर्य उदय
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