अस्पताल मे एक घंटा nibandh
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अस्पताल यह नाम सुनते ही मन परेशान हो जाता है। इसका नाम आते ही मरीजों व डॉक्टरों का स्मरण हो आता है। कई बार मन में प्रश्न उठा की अस्पताल में क्या होता है। लेकिन कभी जाने का मौका नहीं मिला। जल्द ही मुझे अस्पताल जाने का मौका मिला। एक दिन स्कूल से आते ही मुझे एक कुत्ते ने काट खाया। मेरे सारे दोस्त व माँ परेशान हो गई हम सब आईने में रहते थे। अत: मुझे पास के सफ़दरजंग अस्पताल ले जाया गया। ओ.पी.डी का समय समाप्त हो चुका था इसीलिए हम उसके आपातकालीन विभाग (इमरजंसी वार्ड) में गए। अस्पताल के दो बड़े गेट थे। स्कूटर वाला हमें बड़े गेट से आपातकालीन विभाग (इमरजंसी वार्ड) के बाहर ले गया।
वहाँ जाते ही जो दृश्य देखा मेरे रोंगटे खड़े हो गए। उस वार्ड में मरीजों को दिखाने के लिए लाइन लगी हुई थी। मैं और माँ भी उस पक्तिं में जाकर खड़े हो गए। सब की दशा बहुत खराब थी। कोई बुखार के कारण परेशान था तो किसी को सीने में दर्द हो रहा था, कोई पेट के दर्द से परेशान था। अभी हमें खड़े कुछ देर ही हुई थी की वहाँ पर एक युवक लाया गया उसके साथ दो पुलिस अफिसर भी थे। उसके स्कूटर की टक्कर कार के साथ हो गई थी। उसकी स्थिति बहुत नाजुक थी। विभाग वालों ने उसे जल्दी से भर्ती कर लिया। वह युवक खून से लथपथ था। उसको किसी बात का होशा नहीं था। सभी डाक्टरों ने उसकी आवश्यक जाँच की ओर पाया की उसके सर पर आई चोट के कारण वह बेहोश हो गया है। उसकी आवश्यक जाँच के बाद उसे सर्जरी विभाग में भेज दिया गया। फिर धीरे-धीरे हम सबको डॉक्टरों द्वारा देखा जा रहा था। जैसे ही मेरा नंबर आया मैने देखा एक बड़ी-सी टेबल के चारों ओर घेरा डालकर पाँच-छह डॉक्टर बैठे थे। उनके आस-पास बहुत कमरे बने हुए थे, जिनमें मरीज लेटे हुए थे। वहाँ ऑक्सीजन सिलेडर व अन्य सामग्री रखी हुई थी। एक महिला को दिल का दौरा पडा था। उनको दिल में दर्द बढ़ रहा था। वह हमें छोड़कर उनको देखने लगे।
उनकी दशा देखकर में माँ से चिपट गया, एक डॉक्टर ने मेरी उम्र देखते हुए मुझे देखा व माँ को अन्य स्थान पर जाकर रेबीज़ का टीका लगवाने को कहा। माँ मुझे लेकर आगे चल पड़ी। रास्ते में मैने देखा कुछ मरीजों को व्हील चेयर पर व स्टेचर पर लिटाकर ले जाया जा रहा था। उनके परिजन ग्लुकोस की बोतल हाथ में लेकर उनके साथ चल रहे थे।
हर बीमारी के लिए अलग-अलग विभाग थे। वहाँ पर मैंने सर्जरी विभाग, हड्डी विभाग, स्त्री रोग विभाग, मानसिक रोग विभाग व बालरोग विभाग देखे। जहाँ पर मरीज भर्ती थे। सारे कमरे मरीजों से भरे पड़े थे व डॉक्टर उनको जा-जाकर देख रहे थे। हम मरहम-पट्टी कक्ष में पहुँचे जहाँ पर दो नर्स बैठी थी। वह सबसे बड़े प्यार से बात कर रही थी। माँ ने डॉक्टर की दी हुई पर्ची उन्हें दे उन्होंने पर्ची देखी व मुझे रेबीज का टीका लगा दिया। उसके बाद हम अस्पताल से बाहर आ गए। उस दिन में अस्पताल में करीब एक घंटा रहा परन्तु वह एक घंटा अस्पताल में भुलाए नहीं भुलता। वहाँ जाकर मुझे एहसास हुआ की डॉक्टरों की जिंदगी कितनी मश्किल होती है। उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धाभाव उत्पन्न होने लगता है।
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