अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं सांस लेते हो,
घर- घर भर देते हो,
उड़ने को नभ मैं तुम
पर -पर कर देते हो,
आंख हटाता हूं तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंथ- गंध -पुष्प- माल,
पाट - पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
क) कवि किस समय की बात कर रहा है?
१) फागुन की
२) सावन की
३)वर्षा की
४)भादो की
ख) फागुन की आभा किससे नहीं सट रही है?
१) मन से
२) वृक्षों से
३) तन से
४)फूलों से
ग) कवि ने कविता में किससे अपनी बात कहनी चाही है?
१) प्रकृति से
२) प्रेमिका से
३) पत्नी से
४) मां से
घ) कविता में किसकी सुंदर छटा को बघारा गया है ?
१)प्रकृति की
२)बादलों की
३) वर्षा की
४)प्रेमिका की
ड) कवि के आंख हटाने पर भी क्या नहीं हट रही है ?
१)फागुन की आभा
२)बादलों की छटा
३)सूरज की चमक
४) प्रेमिका का चेहरा
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(क) फागुन की
(ख) तन से
(ग) प्रकृति से
(घ) प्रेमिका की
(ङ) प्रेमिका का चेहरा
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