अध्ययन क्षेत्र के लिए आवश्यक सामग्री बताइए
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किसी भी अर्थव्यवस्था का स्वरूप, निर्धनता एवं संपन्नता, विविधीकरण एवं जीवन-यापन की गतिविधियाँ वहाँ के पर्यावरण, जिसमें प्राकृतिक संसाधन अत्यंत प्रमुख है, से प्रभावित होता है। वे समस्त वस्तुयें जो मनुष्य को प्रकृति से बिना किसी लागत के उपहार स्वरूप प्राप्त हुई है प्राकृतिक संसाधन कहलाती है। इस प्रकार किसी अर्थव्यवस्था की भौगोलिक स्थिति उपलब्ध भूमि एवं मिट्टी, खनिज पदार्थ, जल एवं वनस्पतियाँ आदि प्राकृतिक संसाधन माने जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेषज्ञ समिति के अनुसार ‘‘मनुष्य अपने लाभपूर्ण उपयोग के लिये प्राकृतिक संरचना अथवा वातावरण के रूप में जो भी संसाधन प्राप्त करता है, उसे प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। मिट्टी व भूमि के रूप में प्राकृतिक, साधन वनस्पति तथा पेड़ पौधों को पोषण देते हैं। इसके अतिरिक्त सतही और भूमिगत जल संसाधन मानव, पशु व वनस्पति जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक पदार्थ है। जल विद्युत ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। और जल मार्गों पर परिवहन के विभिन्न साधनों का विकास निर्भर है।’’
प्राकृतिक साधनों के कुछ विशिष्ट पहलू होते हैं, प्राकृतिक संसाधन समाज को नि:शुल्क बिना किसी विशेष प्रयास के प्राप्त होते हैं। प्राकृतिक संसाधन स्वत: निष्क्रिय होते हैं। वे अपनी उपस्थिति मात्र से ही मानव जीवन को सुविधा प्रदान करते हैं और अस्तित्व का आधार प्रदान करते हैं। यदि इनका सुविचारित विदोहन किया जाय तो इनकी उपादेयता अधिक हो जाती है। समाज की प्रत्येक आर्थिक क्रिया का क्रियान्वयन प्राकृतिक संसाधनों की भूमिका से प्रभावित होता है परंतु कृषि कार्यों का तो प्रत्यक्ष और तत्कालिक संबंध प्राकृतिक संसाधनों से होता है। कृषि एक जैविक क्रिया है। पौधों की जीवन क्रिया एवं उनका उत्पादन स्तर भूमि क्षेत्र, मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता, वर्षा एवं जलवायु से अत्यधिक प्रभावित होता है। वस्तुओं को उपभोग काबिल बनाने की प्रक्रिया यांत्रिक है परंतु कृषि एक जैविक क्रिया है। पौधों का विकास प्राकृतिक तत्वों से पोषित होकर स्वयं होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पौधों का विकास आधारिक रूप से भौतिक संख्या जलवायु एवं मिट्टी इत्यादि पर्यावरणीय दशाओं से आधारिक रूप से प्रभावित होता है। यहाँ कृषि से संबंधित विभिन्न पर्यावरणीय घटकों यथा भौगोलिक स्थिति, भौतिक स्वरूप, वर्षा तापमान मिट्टी सूखा, बाढ़ आदि का विश्लेषण किया गया है।
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किसी भी अर्थव्यवस्था का स्वरूप, निर्धनता एवं संपन्नता, विविधीकरण एवं जीवन-यापन की गतिविधियाँ वहाँ के पर्यावरण, जिसमें प्राकृतिक संसाधन अत्यंत प्रमुख है, से प्रभावित होता है। वे समस्त वस्तुयें जो मनुष्य को प्रकृति से बिना किसी लागत के उपहार स्वरूप प्राप्त हुई है प्राकृतिक संसाधन कहलाती है। इस प्रकार किसी अर्थव्यवस्था की भौगोलिक स्थिति उपलब्ध भूमि एवं मिट्टी, खनिज पदार्थ, जल एवं वनस्पतियाँ आदि प्राकृतिक संसाधन माने जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेषज्ञ समिति के अनुसार ‘‘मनुष्य अपने लाभपूर्ण उपयोग के लिये प्राकृतिक संरचना अथवा वातावरण के रूप में जो भी संसाधन प्राप्त करता है, उसे प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। मिट्टी व भूमि के रूप में प्राकृतिक, साधन वनस्पति तथा पेड़ पौधों को पोषण देते हैं। इसके अतिरिक्त सतही और भूमिगत जल संसाधन मानव, पशु व वनस्पति जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक पदार्थ है। जल विद्युत ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। और जल मार्गों पर परिवहन के विभिन्न साधनों का विकास निर्भर है।’’
प्राकृतिक साधनों के कुछ विशिष्ट पहलू होते हैं, प्राकृतिक संसाधन समाज को नि:शुल्क बिना किसी विशेष प्रयास के प्राप्त होते हैं। प्राकृतिक संसाधन स्वत: निष्क्रिय होते हैं। वे अपनी उपस्थिति मात्र से ही मानव जीवन को सुविधा प्रदान करते हैं और अस्तित्व का आधार प्रदान करते हैं। यदि इनका सुविचारित विदोहन किया जाय तो इनकी उपादेयता अधिक हो जाती है। समाज की प्रत्येक आर्थिक क्रिया का क्रियान्वयन प्राकृतिक संसाधनों की भूमिका से प्रभावित होता है परंतु कृषि कार्यों का तो प्रत्यक्ष और तत्कालिक संबंध प्राकृतिक संसाधनों से होता है। कृषि एक जैविक क्रिया है। पौधों की जीवन क्रिया एवं उनका उत्पादन स्तर भूमि क्षेत्र, मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता, वर्षा एवं जलवायु से अत्यधिक प्रभावित होता है। वस्तुओं को उपभोग काबिल बनाने की प्रक्रिया यांत्रिक है परंतु कृषि एक जैविक क्रिया है। पौधों का विकास प्राकृतिक तत्वों से पोषित होकर स्वयं होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पौधों का विकास आधारिक रूप से भौतिक संख्या जलवायु एवं मिट्टी इत्यादि पर्यावरणीय दशाओं से आधारिक रूप से प्रभावित होता है। यहाँ कृषि से संबंधित विभिन्न पर्यावरणीय घटकों यथा भौगोलिक स्थिति, भौतिक स्वरूप, वर्षा तापमान मिट्टी सूखा, बाढ़ आदि का विश्लेषण किया गया है।