b) मंदिरों की स्थापत्य कला में चोल शासकों की महत्त्वपूर्ण देन की जांच कीजिए।
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चोलकालीन मंदिरों का निर्माण चोल साम्राज्य के महान राजाओं द्वारा किया गया था| ये मंदिर सम्पूर्ण दक्षिण भारत के अलावा भारत के पड़ोसी द्वीपों पर भी फैले हुए हैं। इन मंदिरों में 11वीं और 12वीं शताब्दी में निर्मित तीन मंदिर दरासुरम का एरावतेश्वर मंदिर, गांगेयकोंड चोलपुरम के मंदिर और तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर प्रमुख हैं| तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर को 1987 में जबकि दरासुरम के एरावतेश्वर मंदिर और गांगेयकोंड चोलपुरम के मंदिर को 2004 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था|
चोल साम्राज्य के दौरान निर्मित मंदिरों की वास्तुकला की निम्नलिखित विशेषतायें थीं :
1. चोलकालीन मंदिरों का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया था|
2. इन मंदिरों के भीतरी भाग, जहाँ देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थी, उसे गर्भगृह कहा जाता था|
3. “विमान” चोलकालीन मंदिरों की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी| इस अवधि के दौरान विशालकाय विमानों का निर्माण किया गया था|
4. चोलकालीन मंदिरों में राजाओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थी| इसके पीछे मुख्य उद्येश्य राजा को देवता के रूप में प्रचारित करना था|