Hindi, asked by aniketmhatre7574, 1 year ago

ब्राह्मण का अर्थ लिखिए|

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Answered by KomalaLakshmi
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ब्राह्मण शब्द आदि वेद से उत्पन्न हुआ है ब्राह्मण शब्द का अर्थ या परिभाषा वेद या उपनिषद से जानना उत्तम है|‘ब्राह्मण’ की परिभाषा बताते हुए उपनिषदकार कहते हैं कि जो समस्त दोषों से रहित, अद्वितीय, आत्मतत्व से संपृक्त है, वह ब्राह्मण है ! भारत का मुख्य आधार ही ब्राह्मणो से शुरू होता है।एेतिहासिक रूप हिन्दु वर्ण व्‍यवस्‍था में चार वर्ण होते हैं|ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं |उन चार वर्णों में एक वर्ण है ब्राह्मण||‘ इन वर्णों में ब्राह्मण ही प्रधान है, ऐसा वेदो का वचन है ।ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्रोत वेद हैं। ब्राह्मण समय के अनुसार अपने आप को बदलने में सक्षयम होते है।



केवल जीव को ब्राह्मण नहीं कह सकते ।क्योंकि चांडाल से लेकर सभी मानवों के शरीर एक जैसे है अर्थात पांचभौतिक होते हैं,उनमें जरा-मरण, धर्म-अधर्म आदि सभी सामान होते हैं | दिनचर्या इस प्रकार है - स्नान, सन्ध्यावन्दनम्, जप, उपासना, तथा अग्निहोत्र। इसलिए केवल शरीर का ब्राह्मण होना भी संभव नहीं है !इस प्रकार ब्रह्मभाव से संपन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है |


Answered by mrAniket
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ब्राह्मण शब्द का अर्थ क्या है? वज्रसुचिकोपनिषद ( वज्रसूचि उपनिषद् ) यह उपनिषद सामवेद सेसम्बद्ध है ! इसमें कुल ९ मंत्र हैं ! सर्वप्रथम चारों वर्णों में से ब्राह्मणकी प्रधानता का उल्लेख किया गया है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं ! इन वर्णों में ब्राह्मण हीप्रधान है, ऐसा वेद वचन है और स्मृति में भी वर्णित है ! जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त ना हो; जाति गुण और क्रिया से भीयुक्त ण हो; षड उर्मियों और षड भावों आदि समस्त दोषों से मुक्तहो; सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला ,अशेष कल्पों का आधार रूप , समस्त प्राणियों के अंतस में निवासकरने वाला , अन्दर-बाहर आकाशवत संव्याप्त ; अखंड आनंद्वान ,अप्रमेय, अनुभवगम्य , अप्रत्येक्ष भासित होने वाले आत्मा काकरतल आमलकवत परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला ; शम-दमआदि से संपन्न ; मात्सर्य , तृष्णा , आशा,मोह आदि भावों से रहित;दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो,वही ब्राह्मण है; ऐसा श्रुति, स्मृति-पूरण और इतिहास का अभिप्राय है! इस (अभिप्राय) के अतिरिक्त एनी किसी भी प्रकार से ब्राह्मणत्वसिद्ध नहीं हो सकता !
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सीधे सरल शब्दों में कह सकते है कि ब्रम्हांड को संतुलित करने वालो को ब्राम्हण कहते हैं । ◆ ◆
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