बेरोजगारी के कितने प्रकार होते हैं?
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Iske Kai prakar hai...........
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बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता /क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है. सामान्य तौर पर बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.
रोजगारी की समस्या विकसित और विकासशील दोनों देशों में पाई जाती है. प्रसिद्द अर्थशास्त्री कीन्स बेरोजगारी को किसी भी समस्या से बड़ी समस्या मानता था. इसी कारण वह कहता था कि यदि किसी देश के पास बेरोजगारों से करवाने के लिए कोई भी काम ना हो तो उनसे सिर्फ गड्डे खुदवाकर उन्हें भरवाना चाहिए ऐसा करवाने से बेरोजगार लोग भले ही कोई उत्पादक कार्य न करें लेकिन वे अनुत्पादक कार्यों में संलिप्त नही होंगे और देश में वस्तुओं और सेवाओं की मांग बनी रहेगी जिससे देश में औद्योगिक विकास होता रहेगा.
बेरोजगार किसे कहते हैं
‘बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.’
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.
विकासशील देशों में निम्न प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है
1. #मौसमी_बेरोजगारी: इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है. कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई, बोवाई, कटाई आदि कार्यों के समय तो रोजगार मिलता है लेकिन जैसे ही कृषि कार्य ख़त्म हो जाता है तो कृषि में लगे लोग बेरोजगार हो जाते हैं.
2. #प्रच्छन्न_बेरोजगारी: प्रच्छन्न बेरोजगारी उस बेरोजगारी को कहते हैं जिसमे कुछ लोगों की उत्पादकता शून्य होती है अर्थात यदि इन लोगों को उस काम में से हटा भी लिया जाये तो भी उत्पादन में कोई अंतर नही आएगा. जैसे यदि किसी फैक्ट्री में 100 जूतों का निर्माण 10 लोग कर रहे हैं और यदि इसमें से 3 लोग बाहर निकाल दिए जाएँ तो भी 100 जूतों का निर्माण हो जाये तो इन हटाये गए 3 लोगों को प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार कहा जायेगा. भारत की कृषि में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है.
3. #संरचनात्मक_बेरोजगारी: संरचनात्मक बेरोजगारी तब प्रकट होती है जब बाजार में दीर्घकालिक स्थितियों में बदलाव आता है. उदाहरण के लिए: भारत में स्कूटर का उत्पादन बंद हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस नए विकास के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे मिस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की मांग बढ़ गयी है. इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन के कारण पैदा होती है.
विकसित देशों में इन दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है
1. #चक्रीय_बेरोजगारी: इस प्रकार की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होती है. जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और जब अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आता है तो उत्पादन कम होता है और कम लोगों की जरुरत होती है जिसके कारण बेरोजगारी बढती है.
2. #प्रतिरोधात्मक_या_घर्षण_जनित_बेरोजगारी: ऐसा व्यक्ति जो एक रोजगार को छोड़कर किसी दूसरे रोजगार में जाता है, तो दोनों रोजगारों के बीच की अवधि में वह बेरोजगार हो सकता है, या ऐसा हो सकता है कि नयी टेक्नोलॉजी के प्रयोग के कारण एक व्यक्ति एक रोजगार से निकलकर या निकाल दिए जाने के कारण रोजगार की तलाश कर रहा हो , तो पुरानी नौकरी छोड़ने और नया रोजगार पाने की अवधि की बेरोजगारी को घर्षणजनित बेरोजगारी कहते हैं.
#बेरोजगारी के अन्य प्रकार इस प्रकार हैं
1. #ऐच्छिक_बेरोजगारी: ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार नही है अर्थात वह ज्यादा मजदूरी की मांग कर रहा है जो कि उसको मिल नही रही है इस कारण वह बेरोजगार है.
2. #खुली_या_अनैच्छिक_बेरोजगारी : ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है लेकिन फिर भी उसे काम नही मिल रहा है तो उसे अनैच्छिक बेरोजगार कहा जायेगा.
#इसके_अलावा कुछ ऐसे बेरोजगार भी होते हैं जिनको मजदूरी भी ठीक मिल सकती है लेकिन फिर भी ये लोग काम नही करना चाहते हैं जैसे: भिखारी, साधू और अमीर बाप के बेटे इत्यादि.
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