Hindi, asked by Rusgacj, 10 months ago

badalti parvarish mein badalti shiksha par anuched hindi mai

Please I beg ki koi points lene ke liye kuch bhi mat likhna bohot urgent hai mujhe koi dede 5 se 10 min ke andar

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Answered by Anonymous
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माँ सरस्वती की वन्दना से लेकर गुरुकुल में योग्य गुरुओं से मौखिक शिक्षा पाने वाले इस देश में शिक्षा का कितना महत्व है यह सर्व विदित है। यद्यपि समाज के वर्ण व्यवस्था पर आधारित होने के कारण हर वर्ग को शिक्षा पाने का अधिकार प्राप्त नहीं था। धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन आया और वर्ण व्यवस्था का विरोध होने लगा। आज के समाज में शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार बन गया है। भारतीय संविधान के अनुसार हर नागरिक को शिक्षा पाने का अधिकार है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो। वर्तमान में समाज का ढांचा ऐसा बन गया है कि जिसके पास साधन हैं वही शिक्षा और विशेषरूप से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है। देश में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के कारण शिक्षा पाने वालों के अनुपात में अशिक्षित लोगों की संख्या अब भी बहुत ज्यादा है।

गुरुकुल के पवित्र वातावरण में वैदिक शिक्षा प्राप्त करने का समय अब नहीं रहा। देश में अंग्रेजों के आगमन के बाद से उनकी पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव हमारी संस्कृति के हर क्षेत्र पर पड़ा। जहां एक ओर बड़े शहरों में खोले गये मिशनरी स्कूल तथा उनके बाद इंगलिश माध्यम पब्लिक स्कूलों का बोलबाला रहा, वहीं गांव देहात में सरकारी स्कूल खोलने का जिम्मा सरकार ने उठा लिया। जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ आज शहरों में यह दशा है कि पब्लिक स्कूल गली-गली में दुकानों की तरह खुल गये हैं। किसी भी कालोनी के हर मोड़ पर आपको एक पब्लिक स्कूल का बोर्ड टंगा जरूर नजर आयेगा। इन बोर्डो को देख विदेश से आया कोई भी व्यक्ति एक बारगी यहां के शिक्षा स्तर को लेकर जरूर भ्रमित हो जाएगा।

देश के कुछ नामचीन स्कूलों के नाम लिए जाएं तो वहां पर पढ़ने वालों के सिर गर्व से ऊंचे हो जाते हैं। इन स्कूलों में जहां उच्च कोटि की शिक्षा दी जाती है वहीं बच्चों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर भी ध्यान दिया जाता है। ऐसे स्कूलों के विद्यार्थी अपने शिक्षकों को इसलिए सम्मान देते हैं कि उन्होंने जो सबक पढ़ाया वह उन्हें जीवन भर याद रहा या उनके पढ़ाने का तरीका इस प्रकार होता है कि वे उस चीज को जीवन भर याद रख सकेंगे। आज ऐसे शिक्षा संस्थानों की देश में कितनी संख्या है यह बताने की जरूरत नहीं है। ढाई या तीन वर्ष का बच्चा जब नर्सरी स्कूल में भेजा जाता है तो उसके अभिभावक के मन में ढेर सारी आशाएं होती हैं। क्योंकि बच्चे के जीवन की यह पहली सीढ़ी है। अत: नर्सरी व के. जी. क्लास पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं को बहुत अहम भूमिका निभानी होती है। इन छोटी कक्षाओं में स्कूल का वातावरण बच्चों के लिए एक सुखद अनुभूति का होना चाहिए।

खेल-खिलौने तथा संगीत आदि के द्वारा मनोरंजन व शिक्षा का सही समन्वय होना नर्सरी स्कूलों के लिए अति आवश्यक है। खेल-खेल में जीवन के सच्चे आदर्शों व आधारभूत धारणाओं का इन छोटी कक्षाओं में बच्चों को ज्ञान कराना बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन वास्तविकता इससे बहुत दूर है। वर्तमान में स्कूलों में जाते ही बच्चों को पेंसिल कापी पकड़ायी जाती है और शुरू हो जाता है अंग्रेजी वर्णमाला के नम्बरों का सफर। भारी बस्ते लादे छोटे-छोटे बच्चे सुबह ही निकल पड़ते हैं अपने जेलनुमा स्कूलों के लिए। सात से दस किताबों का बोझ उठाने वाले नर्सरी व के. जी. कक्षा के बच्चे गृह कार्य व स्कूल कार्य के बीच खोकर अपना अस्तित्व ही भूल जाते हैं। स्कूल जाते ही बच्चे के व्यक्तित्व के विकास के बदले उसके व्यक्तित्व का गतिरोध शुरू हो जाता है।

गली-गली में खुल रहे पब्लिक स्कूलों में भी होड़ मची हुई है। वे अपने यहां अधिक से अधिक पाठ्यक्रम रखने में अपनी शान समझते हैं। इन स्कूलों का मानना है कि जितने छोटे बच्चों को जितने ज्यादा विषय पढ़ायेंगे उसी से उनकी काबलियत का पता चलेगा। अनुभव व बहुदर्शिता द्वारा तथा मौखिक रूप से पढ़ाने के बजाय बच्चों को हमेशा पेंसिल व पेन पकड़ाकर लिखित कार्य कराने की पद्धति बच्चों के ज्ञान में किसी प्रकार से सहायक नहीं हो सकती। इन सबसे अधिक बच्चों के विकास में जो अवरोधक है वह है ‘टेस्ट संस्कृति’ वर्षभर में बारह बार टेस्ट व परीक्षा लेना बच्चों पर इतना ज्यादा बोझ डाल देता है कि उन्हें पूरे वर्षभर किताबों से सर उठाने की फुरसत नहीं होती। उधर अभिभावक भी इस होड़ में रहते हैं कि हमारा बच्चा किसी से पीछे न रह जाए इसलिए उसे ट्यूशन के अलावा घर पर भी पढ़ने का दुगुना दबाव डाल देते हैं। इस प्रकार बच्चे का इन दबावों के चलते वह विकास नहीं हो पाता जो कि होना चाहिए।

hope it helped u ♥♥♥♥

Answered by xxmisstimepassX
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hope its useful for you and thx

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