bade bhai saheb ka patang ki dor pakadkar bhaagna kya ssabit karta hai ? (bade bhai saheb)
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बड़े भाई साहब नौवीं कक्षा में थे और उनके छोटे भाई पांचवी में | बड़े भाई साहब हर काम आराम से करते | एक एक जमात दो तीन साल तक पढ़ते | छोटा भाई बस खेल कूद में रहता, उसका पढनें में बिलकुल मन नहीं लगता और सिर्फ बड़े भाई की फटकार, दिल को भेद देने वाली बातें सुनता | जब छोटा भाई पांचवी पहले दर्जे में पास हुआ और बड़े भाई साहब नवीं में फेल हुए तो उन्हें अच्छा न लगा | बर्दाश्त करके रह गए और दोबारा ऐसा ही हुआ |
जब दोनों भाइयों में सिर्फ एक दर्जे का फर्क रह गया तब छोटे भाई को लगा की उसकी किस्मत बलवान है और वो कैसे भी पास हमेशा हो जाएगा | तब वो और खेल कूद में लग गया | पतंगबाजी का शौक चढ़ा और एक दिन एक कनकौए लूटने के लिए भाग रहा था तभी बड़े भाई साहब से टक्कर हो गयी |
उन्होंने फिर फटकार लगायी और समझाया की भले ही वह उनसे आगे निकला जाए पढ़ाई में पर वो उससे पांच साल बड़े हैं जो कोई नहीं बदल सकता | जीवन का अनुभव मायने रखता है, किताबें नहीं | फिर उन्होंने माँ और दादा जी का उदाहरण देते हुए बड़े होने का क्या फर्ज होता है समझाया | कि उनका भी मन होता है खेलने को पर बड़े होने की वजह से उनसे सबको अपेक्षाएं हैं और उनका फ़र्ज है छोटे का ध्यान रखना, उसे सही रस्ते पे लाना, सबके बारे में सोचना | तब छोटे भाई को थोड़ी लज्जा आई और उसने कहा की आपका हक़ है मुझे फटकारना आप बड़े हैं | बड़े भाई ने तभी गुजरते हुए पतंग की डोर थाम ली और भागने लगे जिससे पीछे पीछे आती लड़को की टोली न लूट ले |
यह दर्शाता है की बड़े भाई को सदा महसूस होता था की छोटा उनकी बातों का मान नहीं रखता | पर उसका सीधा कहना की उनका हक़ है फटकारना क्योंकि वो बड़े हैं, उनके दिल को छू जाता है और उन्हें तस्सल्ली होती है की ये अब भी मेरा मान करता है |