Bangal ki sanskritik punarutthan mai Bankim Chandra Chattopadhyay ka yogdan
Answers
जीवन परिचय
बंगला भाषा के प्रसिद्ध लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना ज़िले के कांठल पाड़ा नामक गाँव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी अपकृत हुई है। वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होने 1865 में अपना पहला उपन्यास 'दुर्गेश नन्दिनी' लिखा।
राष्ट्र भक्ति
बंकिमचंद्र का जन्म उस काल में हुआ जब बंगला साहित्य का न कोई आदर्श था और न ही रूप या सीमा का कोई विचार। 'वन्दे मातरम्' राष्ट्रगीत के रचयिता होने के नाते वे बड़े सम्मान के साथ सदा याद किए जायेंगे। उनकी शिक्षा बंगला के साथ-साथ अंग्रेज़ी व संस्कृत में भी हुई थी। आजीविका के लिए उन्होंने सरकारी सेवा की, परन्तु राष्ट्रीयता और स्वभाषा प्रेम उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। युवावस्था में उन्होंने अपने एक मित्र का अंग्रेज़ी में लिखा हुआ पत्र बिना पढ़े ही इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया था कि, 'अंग्रेज़ी न तो तुम्हारी मातृभाषा है और न ही मेरी'। सरकारी सेवा में रहते हुए भी वे कभी अंग्रेज़ों से दबे नहीं।
साहित्य क्षेत्र में प्रवेश
बंकिम ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएँ लिखकर प्रवेश किया। उस समय बंगला में गद्य या उपन्यास कहानी की रचनाएँ कम लिखी जाती थीं। बंकिम ने इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का काम किया। 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने 'दुर्गेश नंदिनी' नाम का उपन्यास लिखा। इस ऐतिहासिक उपन्यास से ही साहित्य में उनकी धाक जम गई। फिर उन्होंने 'बंग दर्शन' नामक साहित्यिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। रबीन्द्रनाथ ठाकुर 'बंग दर्शन' में लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में आए। वे बंकिम को अपना गुरु मानते थे। उनका कहना था कि, 'बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं'।
प्रसिद्ध उपन्यास
बंकिम के दूसरे उपन्यास 'कपाल कुण्डली', 'मृणालिनी', 'विषवृक्ष', 'कृष्णकांत का वसीयत नामा', 'रजनी', 'चन्द्रशेखर' आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से 'आनंदमठ' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम 'वन्दे मातरम्' गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेज़ी भाषा या यूरोप का इतिहास पढ़ने से ही जागी। इसका प्रमुख कारण था अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार। बंकिम के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया।
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
'देवी चौधरानी' उनका एक अन्य उपन्यास और 'कमलाकान्त का रोजनामचा' गम्भीर निबन्धों का संग्रह है। एक ओर विदेशी सरकार की सेवा और दूसरी ओर देश के नवजागरण के लिए उच्चकोटि के साहित्य की रचना करना यह काम बंकिम के लिए ही सम्भव था।
राष्ट्रीय गीत
मुख्य लेख : राष्ट्रीय गीत
राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' के रचयिता बंकिमचन्द्र जी का नाम इतिहास में युगों-युगों तक अमर रहेगा क्योंकि यह गीत उनकी एक ऐसी कृति है जो आज भी प्रत्येक भारतीय के ह्रदय को आन्दोलित करने की क्षमता रखती है।
रबीन्द्रनाथ के शब्दों में
रबीन्द्रनाथ ने एक स्थान पर कहा है- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्ति का अपसरित कर दी। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है।
निधन
आधुनिक बंगला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 8 अप्रैल, 1894 ई. को देहान्त हो गया।
Answer:
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय (जन्म: 26 जून, 1838; मृत्यु: 8 अप्रैल, 1894) 19वीं शताब्दी के बंगाल के प्रकाण्ड विद्वान तथा महान कवि और उपन्यासकार थे। 1874 में प्रसिद्ध देश भक्ति गीत वन्देमातरम् की रचना की जिसे बाद में आनन्द मठ नामक उपन्यास में शामिल किया गया। प्रसंगतः ध्यातव्य है कि वन्देमातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।
जीवन परिचय
बंगला भाषा के प्रसिद्ध लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना ज़िले के कांठल पाड़ा नामक गाँव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी अपकृत हुई है। वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होने 1865 में अपना पहला उपन्यास 'दुर्गेश नन्दिनी' लिखा।
राष्ट्र भक्ति
बंकिमचंद्र का जन्म उस काल में हुआ जब बंगला साहित्य का न कोई आदर्श था और न ही रूप या सीमा का कोई विचार। 'वन्दे मातरम्' राष्ट्रगीत के रचयिता होने के नाते वे बड़े सम्मान के साथ सदा याद किए जायेंगे। उनकी शिक्षा बंगला के साथ-साथ अंग्रेज़ी व संस्कृत में भी हुई थी। आजीविका के लिए उन्होंने सरकारी सेवा की, परन्तु राष्ट्रीयता और स्वभाषा प्रेम उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। युवावस्था में उन्होंने अपने एक मित्र का अंग्रेज़ी में लिखा हुआ पत्र बिना पढ़े ही इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया था कि, 'अंग्रेज़ी न तो तुम्हारी मातृभाषा है और न ही मेरी'। सरकारी सेवा में रहते हुए भी वे कभी अंग्रेज़ों से दबे नहीं।
साहित्य क्षेत्र में प्रवेश
बंकिम ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएँ लिखकर प्रवेश किया। उस समय बंगला में गद्य या उपन्यास कहानी की रचनाएँ कम लिखी जाती थीं। बंकिम ने इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का काम किया। 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने 'दुर्गेश नंदिनी' नाम का उपन्यास लिखा। इस ऐतिहासिक उपन्यास से ही साहित्य में उनकी धाक जम गई। फिर उन्होंने 'बंग दर्शन' नामक साहित्यिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। रबीन्द्रनाथ ठाकुर 'बंग दर्शन' में लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में आए। वे बंकिम को अपना गुरु मानते थे। उनका कहना था कि, 'बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं'।
प्रसिद्ध उपन्यास
बंकिम के दूसरे उपन्यास 'कपाल कुण्डली', 'मृणालिनी', 'विषवृक्ष', 'कृष्णकांत का वसीयत नामा', 'रजनी', 'चन्द्रशेखर' आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से 'आनंदमठ' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम 'वन्दे मातरम्' गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेज़ी भाषा या यूरोप का इतिहास पढ़ने से ही जागी। इसका प्रमुख कारण था अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार। बंकिम के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया।
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
'देवी चौधरानी' उनका एक अन्य उपन्यास और 'कमलाकान्त का रोजनामचा' गम्भीर निबन्धों का संग्रह है। एक ओर विदेशी सरकार की सेवा और दूसरी ओर देश के नवजागरण के लिए उच्चकोटि के साहित्य की रचना करना यह काम बंकिम के लिए ही सम्भव था।
राष्ट्रीय गीत
मुख्य लेख : राष्ट्रीय गीत
राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' के रचयिता बंकिमचन्द्र जी का नाम इतिहास में युगों-युगों तक अमर रहेगा क्योंकि यह गीत उनकी एक ऐसी कृति है जो आज भी प्रत्येक भारतीय के ह्रदय को आन्दोलित करने की क्षमता रखती है।
रबीन्द्रनाथ के शब्दों में
रबीन्द्रनाथ ने एक स्थान पर कहा है- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्ति का अपसरित कर दी। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है।
निधन
आधुनिक बंगला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 8 अप्रैल, 1894 ई. को देहान्त हो गया।