Hindi, asked by monika00777, 11 months ago

भिखारी-भीख माँगना-एक व्यक्ति का रोज देखना- फूलों का गुच्छा देना - मंदिर के सामने दुकान खोलना कहानी लेखन​

Answers

Answered by coolthakursaini36
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Answer:

Explanation:

एक भिखारी था जिसकी टांग टूटी हुई थी वह बेचारा सड़क पर भीख मांग करके गुजारा करता था। राजेश जो एक ऑफिस में काम करते थे रोज उसी सड़क से गुजरते और उस भिखारी को देखते थे।

आज राजेश की बेटी का जन्मदिन था। घर आते वक्त उन्होंने उस भिखारी को देखा उसे एक फूलों का गुच्छा दिया और कुछ खाने की चीजें भी दी।

वह भिखारी उस फूल के गुच्छे को लेकर मंदिर की तरफ गया और मंदिर के बाहर बैठ गया। तभी एक व्यक्ति ने उससे कहा की क्या आप यह फूल बेचेंगे भिखारी ने कहा हां और उसने बीस रूपये में वह फूल उस व्यक्ति को बेच दिए।

भिखारी ने उन 20 रुपयों को खर्चा नहीं किया बल्कि अगले दिन उन पैसों के और फूल खरीदें और मंदिर के पास बैठकर बेचने लगा इस तरह उसका व्यवसाय दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। और अंत में उसने एक फूलों की ही दुकान खोल ली, अब वह एक आत्मनिर्भर बन चुका था|

शिक्षा -> परिश्रम से ही सब कार्य सफल होते हैं।

Answered by badhara43
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Explanation:

बहुत समय पहले की बात है . एक बार एक व्यापारी सुबह सुबह अपने ऑफिस जा रहा था. उसने देखा कि रास्ते में एक दीन हीन सा दिखने वाला आदमी बैठा था, उसके पास कुछ सूखे हुए फूल बेचने के लिए रखे हुए थे और एक हाथ में उसने अपनी टोपी उलटी पकड़ी हुई थी.

उसी धनि व्यापारी ने अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकला और वो नोट उस व्यक्ति की टोपी में डाल दिया और जल्दी जल्दी वहां से निकल गया. अचानक वो रुका और आधे रास्ते से वापस आकर भिखारी से बोला – माफ़ करना भाई, मैं जल्दी में हूँ इसलिए अपना खरीदा हुआ सामान लेना भूल गया और ऐसा कहकर उसने सामने रखे फूलों में से एक डहेलिया का फूल उठा लिया. उसने कहा- ये मेरा पसंदीदा फूल है. आखिरकार तुम भी मेरी तरह व्यापारी ही तो हो. ऐसा कहकर वोमुस्कराता हुआ चला गया.

लगभग दो साल के बाद एक दिन वो व्यापारी एक बड़े से होटल में बैठा रात का खाना खा रहा था कि अचानक से एक सुपरिधानित , रूपवान व्यक्ति उसके पास आया और उसने आपना परिचय दिया – शायद आपने मुझे पहचाना नहीं होगा ..लेकिन आप ही वो व्यक्ति हैं जिसने मेरी कुछ बनने में मदद की . मैं तो सिर्फ एक खानाबदोश फूल बेचने वाला था. आपने मुझे मेरा आत्म सम्मान वापस किया है.

मित्रों, वो ही व्यक्ति था जिसे उस व्यापारी ने उस दिन दस रूपये देकर एक फूल लिया था. आज मैं अपने आप को व्यापारी कह सकता हूँ..जैसा कि आपने उस दिन कहा था. वो सिर्फ दान नहीं था जो उस दिन धनि व्यापारी ने उस गरीब आदमी को दिया था. उसने उस गरीब का आत्म सम्मान और गरिमा वापस की थी जो कि पैसे से कही अधिक मूल्यवान और जरूरी था.

इसी तरह मित्रों अगर हमारे अन्दर आत्म सम्मान है तो हम जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं. और अगर हम किसी का आत्म सम्मान उसे वापस दिलाने में कुछ मदद कर सकते हैं तो ये हमारी सबसे बड़ी उपलब्द्धि होगी.

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