Social Sciences, asked by babani01434, 5 months ago

भारत में बदलते गांव पुस्तक के लेखक कौन है?​

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Answered by Anonymous
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no idea ................

Answered by amankatiyar362
0

Answer:

सतेंद्र कुमार

Explanation:

आजादी के सत्तर साल बाद पीछे पलटकर यह देखना जरूरी है कि आंबेडकर और गांधी की कल्पना का गांव आखिर कितना सुरक्षित रहा है. पुस्तक 'बदलता गांव बदलता देहात' में समाजशास्त्री सतेंद्र कुमार कहते हैं- गांधी गांव के जीवन में भारतीय सभ्यता का सूक्ष्म रूप देखते थे.

वे चाहते थे कि आधुनिक भारत के निर्माण में गांवों की महत्वपूर्ण भूमिका हो तथा भारत का विकास आम आदमी व गरीबों की जरूरत के हिसाब से हो, लेकिन आज सरकारें आबादी के बड़े हिस्से की कीमत पर कुछ वर्चस्वशील लोगों का लालच पूरा करने में जुटी हैं.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से आयी इस पुस्तक में कुल छह लेख हैं. किताब के उपशीर्षक, जो उपसंहार की तरह अंतिम लेख का भी शीर्षक है, में कहा गया है कि जजमानी व्यवस्था के अवसान से ग्रामीण जाति व्यवस्था में कई परिवर्तन हुए तथा जातियों के आपसी संबंध भी बदले.

किसान जातियों, दस्तकारों तथा मजदूरों की आपसी आर्थिक-सामाजिक निर्भरता कम होती गयी है. विभिन्न जातियों में आर्थिक सहयोग तथा पारस्परिकता का स्थान प्रतिस्पर्द्धा ने ले लिया है. इसका कारण यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घट गया है. ऐसी स्थिति में गांव और देहात में रहनेवाले लोगों के रोजगार के साधन बदल गये हैं.

नवउदारवाद और स्मार्टफोन ने ग्रामीण युवाओं के रहन-सहन पर भी पर्याप्त असर डाला है. साक्षरता और शिक्षा का स्तर भले न बढ़ा हो, लेकिन उसका विस्तार तो हुआ ही है.

और इसमें सोशल मीडिया और इंटरनेट का भी कुछ सकारात्मक योगदान है. इसी का परिणाम है कि गांव के लोक-वृत्त में आमूल-चूल परिवर्तन आया है. गांव के युवा भी तेज संगीत के दीवाने होते चले गये हैं और उनके खानपान में भी चाउमीन, पिज्जा-बर्गर और मोमोज का प्रवेश हो चुका है.

गौरतलब बात यह है कि गांव के जीवन और उसके समाज में नयी धार्मिकता, गैर-कृषि रोजगार और चुनावी राजनीति का पुनर्गठन हुआ है. गांव विश्व अर्थव्यवस्था के ही नहीं, अपितु संस्कृति के साथ राजनीति का भी हिस्सा बन गये हैं.

हालांकि, जिन युवा हसरतों और संघर्षों का इस पुस्तक में वर्णन किया गया है, उसे पूरे भारत के बदलते गांवों का समन्वित यथार्थ न मानकर एक संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिए. यह पुस्तक गांव की रू‍ढ़ छवि को अस्थिर करती है और पाठक के सामने गांव को देखने का एक नया परिप्रेक्ष्य और नजरिया रचती है.

#SPJ2

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