भारत में बढ़ती हुई साम्प्रदायिकता के निवारण हेतु चार सुझाव दीजिए।
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नई सरकार के सत्ता में आने के बाद सांप्रदायिक हिंसा का एक दौर सा चल पड़ा है. केवल उत्तर प्रदेश में 600 से अधिक दंगे हुए हैं। सरकार पर संघ का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश हर छोटे से छोटे वारदातों में की जा रही है। प्रधानमंत्री ने इन सभी वारदातों पर चुप्पी साध रखी है। यहाँ तक की उन्होंने जिन वादों के दम पर सरकार बनाई थी, उन्हें पूरा करने की तरफ पहला कदम भी नहीं लिया है। सिर्फ दिखावा और एक शोर चारो तरफ व्याप्त है जिसमे प्रधानमंत्री के चरित्र निर्माण की कोशिश की जा रही है। इन्ही मुद्दों को ध्यान में रखते हुए न्यूज़क्लिक ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ से बात की।
प्रांजल- नमस्कार, न्यूज़क्लिक में आपका स्वागत है। आज हमारे बीच सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ जी हैं, जिनके साथ हम सांप्रदायिकता के बढ़ते चरम पर और नई सरकार के चरित्र पर बात करेंगे। हैलो तीस्ता, आपने देखा है कि जबसे ये नई सरकार सत्ता में आई है, सांप्रदायिक दंगों की एक बाढ़ सी देखने को मिली है। 600 से अधिक दंगे उत्तर प्रदेश में देखने को मिले हैं और कई जगह छोटी छोटी हिंसक घटनाएँ देखने को मिली हैं। प्रधानमंत्री ने इन सभी चीज़ों पे चुप्पी साध रखी है, तो क्या यह कहना सही होगा की जब से नई सरकार सत्ता में आई है, तब से सांप्रदायिक ताकतों को एक खुली छूट मिल गयी है?
तीस्ता सीतलवाड़- न सिर्फ खुली छूट मिली है मगर एक आधार उनका बन गया है कि सरकार के ज़रिये जो बहुमत से बनी गई सरकार है, आपकी लोक सभा में बहुमत की उनकी संख्या है, इस से आपको कोई टिप्पणी नहीं मिलेगी। देखिये सबसे बड़ी बात है की हमारी जो भारत की जंभूरियत है, जो लोक शाही है, उसकी सबसे बड़ी चुनौती ये है कि जो सांप्रदायिक हिंसा और इलेक्शंस को लेकर जो संबंध बनाये गए हैं, जब भी कोई हमारे राज्य में या हमारे देश में कोई जनरल इलेक्शन या राज्य के इलेक्शन आते हैं तब आप देखेंगे की साम्प्रदायिकता बढ़ जाती है। इनका आधार ये है की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो भारतीय जनता पार्टी का फाउंडेशन है, और जो एक फिरका परस्त सोच का एक संगठन है, वो चाहता है की सांप्रदायिक दंगे के ज़रिये आवाम में एक पोलराइज़ेशन हो, फिजिकल भी और मेन्टल भी ताकि जिस वक़्त वो इंसान वोट डालने जाये, वो अपने आप को हिन्दू मान कर वोट डाले।
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सम्प्रदायवाद का अर्थ ‘‘दूसरे समुदाय के लोगो के प्रति धार्मिक भाषा अथवा सांस्कृतिक आधार पर असहिष्णुता की भावना रखना तथा धार्मिक सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर अपने समुदाय के लिए राजनीतिक अधिकार, अधिक सत्ता, प्रतिष्ठा की मांगे रखना और अपने हितो को राष्ट्रीय हितो से ऊपर रखना है।
सम्प्रदायिकता की समस्या के मुख्य कारण -संपादित करें
धर्म की संकीर्ण व्याख्या- धर्म की संकीर्ण व्याख्या लोगो को धर्म के मूल स्वरूप से अलग कर देती है धर्म की संकीर्ण व्याख्या साम्प्रदायिकता का कारण है-
सामाजिक मान्यताएं- विभिन्न सम्प्रदायवादी धर्मिक मान्यताएं एक दूसरे से भिन्न है जो परस्पर दूरी का कारण बनती है। छूआछूत व ऊंचनीच की भावना सम्प्रदायवाद को फैलाती है।
राजनीतिक दलो द्वारा प्रोत्साहन- भारत के विविध राजनीतिक दल चुनाव के समय वोटो की राजनीति से साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन देते है।
साम्प्रदायिक संगठन- कुछ सामप्रदायिक संगठन अपनी संकीर्ण राजनीति से लोगो के बीच साम्प्रदायिकता की भावना को भड़काकर अपने आपको सच्चा राष्ट्रवादी
प्रशासनिक अक्षामता- सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण भी कभी कभी साम्पद्रायिक दंगे हो जाते है।
सम्प्रदायवाद का लोकतंत्र पर प्रभाव-संपादित करें
देश में सम्प्रदायिकता के निम्न दुष्परिणाम देखने को मिलते है-
राष्ट्रीय एकता बाधित- राष्ट्रीय एकता का अर्थ कि देश के सभी लोग एक होकर रहे जबकि साम्प्रदायिकता देश की जनता को समूहो तथा साम्प्रदायिकता में बांट देती है।
राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा प्रभावित- साम्प्रदायिक तत्वो द्वारा फैलार्इ जाने वाली अफवाहों व गडब़ ड़ी से देश की शांति भंग हो जाती है।
वैनस्यता को बढ़़ावा- साम्प्रदायिकता से विभिन्न वर्गो में द्वेश को बढ़ावा मिलता है।
विकास में बाधक- साम्प्रदायिक दुर्भावना के कारण समाज में पारस्परिक सहयोग की भावना समाप्त हो जाती है। देश के विभिन्न स्थानो पर साम्प्रदायिक दंगे होने से वहां का जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है और समस्त विकास कार्य ठप्प हो जाते है।
भ्रष्टाचार में वृद्धि- उच्चाधिकारी और राजनेता साम्प्रदायिक आधार पर अनुचित एवं अवैधानिक कार्यवाहीयो में संलग्न व्यक्ति का ही पक्ष लेते है। इतना ही नही नौकरियां एवं अन्य प्रकार की सुविधा देने में भी साम्प्रदायिक आधार पर विचार करते है। इससे उनका नैतिक पतन होता है और भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
सम्प्रदायवाद की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है।
यह अंधविश्वास पर आधारित है। उदाहरण के लिये रूढीबाद
यह असहिष्णुता पर आधारित है। यहाँ असहिणुता का अर्थ अन्य जाति, धर्म और परंपरा से जुड़े व्यक्ति के विश्वासों, व्यवहार व प्रथा को मानने की अनिच्छा हैं।
यह दूसरे धर्मो के प्रति दुष्प्रचार करता है।
यह दूसरो के विरूद्ध हिंसा सहित अतिवादी तरीको को स्वीकार करता है।