भारत में मानवाधिकार संकट में (निबन्ध) | Write an Essay on “Human Rights is in Crisis in India” in Hindi
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on “Human Rights is in Crisis in India” in Hindi!
मानव अधिकार किसी भी मानव विशेष के अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है । आज संपूर्ण विश्व के समक्ष यह एक समस्या के रूप में उपस्थित हुआ है और मानव अपने इन्हीं अधिकारों के लिए उचित या अनुचित रूप से एक-दूसरे से जूझ रहा है ।
दुर्भाग्यवश सभ्यता के प्रारंभ से ही विश्व को मानव मात्र के कर्तव्य व अधिकारों की शिक्षा देनेवाला वर्तमान समय में दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र भारत आज स्वयं मानवाधिकार के हनन के आरोप से कलंकित है । मानवाधिकार की अवधारणा एक सुसभ्य समाज की अवधारणा है, जिसमें किसी व्यक्ति या व्यक्ति के समूह को उत्पीड़न और यातनाओं से मुक्त जीवन-यापन का अधिकार प्राप्त है ।
हालांकि यह अवधारणा समाज के परिप्रेक्ष्य की है, किंतु वैयक्तिक परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकार की अवधारणा समाज की जैविक इकाई व्यक्ति के अधिकारों से है । मानवजाति के लिए मानवाधिकारों का व्यापक और असीम महत्त्व है, इसलिए इसे कभी-कभी मूलाधिकार, आधारभूत अधिकार, अंतर्निहित अधिकार, नैसर्गिक अधिकार तथा मानवीय अधिकार के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है ।
वस्तुत: अधिकार व्यक्ति की वे तर्कसंगत माँगे हैं, जो व्यक्ति अपने समग्र विकास के लिए समाज के समक्ष रखता है । ये माँगे सामान्यत: अलग-अलग समाज के, अलग-अलग संस्कृति के और उनके विकास की स्थिति के अनुकूल अलग-अलग होती हैं या हो सकती हैं, किंतु इन विभिन्न प्रकार की श्रेणियों में एक माँग ऐसी भी होती है, जो समस्त मानवजाति के लिए समान होती है ।
मानव अधिकार किसी भी मानव विशेष के अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है । आज संपूर्ण विश्व के समक्ष यह एक समस्या के रूप में उपस्थित हुआ है और मानव अपने इन्हीं अधिकारों के लिए उचित या अनुचित रूप से एक-दूसरे से जूझ रहा है ।
दुर्भाग्यवश सभ्यता के प्रारंभ से ही विश्व को मानव मात्र के कर्तव्य व अधिकारों की शिक्षा देनेवाला वर्तमान समय में दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र भारत आज स्वयं मानवाधिकार के हनन के आरोप से कलंकित है । मानवाधिकार की अवधारणा एक सुसभ्य समाज की अवधारणा है, जिसमें किसी व्यक्ति या व्यक्ति के समूह को उत्पीड़न और यातनाओं से मुक्त जीवन-यापन का अधिकार प्राप्त है ।
हालांकि यह अवधारणा समाज के परिप्रेक्ष्य की है, किंतु वैयक्तिक परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकार की अवधारणा समाज की जैविक इकाई व्यक्ति के अधिकारों से है । मानवजाति के लिए मानवाधिकारों का व्यापक और असीम महत्त्व है, इसलिए इसे कभी-कभी मूलाधिकार, आधारभूत अधिकार, अंतर्निहित अधिकार, नैसर्गिक अधिकार तथा मानवीय अधिकार के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है ।
वस्तुत: अधिकार व्यक्ति की वे तर्कसंगत माँगे हैं, जो व्यक्ति अपने समग्र विकास के लिए समाज के समक्ष रखता है । ये माँगे सामान्यत: अलग-अलग समाज के, अलग-अलग संस्कृति के और उनके विकास की स्थिति के अनुकूल अलग-अलग होती हैं या हो सकती हैं, किंतु इन विभिन्न प्रकार की श्रेणियों में एक माँग ऐसी भी होती है, जो समस्त मानवजाति के लिए समान होती है ।
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