"भारत प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्रीय गणराज्य है ।" व्याख्या करें ।
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धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपेक्षता या सेक्युलरवाद (secularism) एक आधुनिक राजनैतिक एवं संविधानी सिद्धान्त है। धर्मनिरपेक्षता के मूलत: दो प्रस्ताव [1] है 1) राज्य के संचालन एवं नीति-निर्धारण में मजहब (रेलिजन) का हस्तक्षेप नही होनी चाहिये। 2) सभी धर्म के लोग कानून, संविधान एवं सरकारी नीति के आगे समान है
धर्मनिरपेक्ष किंवा लौकिक राज्य में ऐसे राज्य की कल्पना की गई हैं, जो सभी धर्मों तथा संप्रदायों का समान आदर करता है। सबको एक समान फलने और फूलने का अवसर प्रदान करता है। राज्य किसी धर्म अथवा संप्रदायविशेष का पक्षपात नहीं करता। वह किसी धर्मविशेष को राज्य का धर्म नहीं घोषित करता। प्राय: विश्व के सभी मुसलिम राज्यों ने अपने आपको इस्लामिक राज्य घोषित किया है। बर्मा ने अपना राजधर्म बौद्धधर्म घोषित किया है।
किसी देश में प्राय: किसी धर्मविशेष के माननेवालों का बहुमत रहता है। हिंदुस्तान में हिंदू, पाकिस्तान में मुसलमान, इसरायल में यहूदी, बर्मा, श्रीलंका, स्याम आदि में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। इसी तरह ब्रिटेन, यूरोप उत्तरी और दक्षिण अमरीका, आस्ट्रेलिया आदि में ईसाई धर्म के अनुयायियों का बहुमत है। बहुमत के कारण वहाँ के सांस्कृतिक वातावरण में, वहाँ के धर्म की छाप लगना स्वाभाविक है। किंतु कोई भी राज्य, राज्य के रूप में, किसी धर्मविशेष से अलग रह सकता है। भारत का वर्तमान संविधान तथा लोकतंत्रीय प्रणाली इसके ज्वलंत उदाहरण है।
ब्रिटेन जैसे देश में वहाँ के संविधान के अनुसार राज्य का एक धर्मविशेष से संबंध है। वह ईसाई धर्म के एक संप्रदाय "चर्च ऑव इंग्लैंड से" संबंधित है। फिर भी वहाँ के लोग धर्मनिरपेक्ष भाव से अपना लोकतंत्र तथा शासन चलाते हैं।
सहिष्णुता धर्मनिरपेक्ष राज्य की आधारशिला है। भारत सनातन काल से धार्मिक विषयों में सहनशीलता, उदारता, उदात्त विचार एवं नीति का आश्रय लेता आया है। यह धर्मनिरपेक्ष राज्य का एक पहलू कहा जा सकता है। उसका उसे संपूर्ण रूप नहीं कह सकते। इसके विपरीत सोचने पर देश की राष्ट्रीयता के स्थान पर धर्मविशेष की राष्ट्रीयता, यथा हिंदू राष्ट्रीयता, मुसलिम राष्ट्रीयता, सिख राष्ट्रीयता, किंवा बौद्ध राष्ट्रीयता का विचार करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में भारतीय राष्ट्रीयता, जर्मन राष्ट्रीयता, अमरीकन राष्ट्रीयता केवल नाम मात्र की चीजें रह जाएँगी।
संकीर्ण राष्ट्रीयता पुराने जमाने की बातें हो गई हैं। उनका मेल आधुनिक जगत् से नहीं खाता। वे पिछड़े और पुराने जमाने के नक्शे कहे जाएँगे।
यह धारणा कि धर्मनिरपेक्ष राज्य का सिद्धांत धर्म के विरुद्ध है, गलत है। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य के निवासी धर्म के प्रति उदासीन हो जाएँ, अथवा उसे त्याग दें। उसका सरल अर्थ यह है कि धर्म को दैनिक सामाजिक, राजनीतिक तथा शासकीय जीवनस्तर से पृथक् रखें। धर्म एवं राजनीति को एक में न मिलाकर, उन्हें एक दूसरे का विरोधी न मानकर एक दूसरे का पूरक मानें।
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Bharat ek dharmnirpeksh suprabhat sampanna loktantratmak AVN Samajwadi ganrajya hai is kathan ka mulyankan kijiye