भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी पर निबंध। Atal Bihari Vajpayee par Nibandh
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प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो अपनी पार्टी में ही नहीं, विपक्षी पार्टी में समान रूप से सम्माननीय रहे हैं ।
उदार, विवेकशील, निडर, सरल-सहज, राजनेता के रूप में जहां इनकी छवि अत्यन्त लोकप्रिय रही है, वहीं एक ओजस्वी वक्ता, कवि की संवेदनाओं से भरपूर इनका भाबुक हृदय, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान इनका व्यक्तित्व सभी को प्रभावित कर जाता है ।
ये देश के सफल प्रधानमन्त्रियों में से एक हैं । इनकी विलक्षण वाकपटुता को देखकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने यह कहा कि- ”इनके कण्ठ में सरस्वती का वास है ।” तो नेहरूजी ने इन्हें ”अद्भुत वक्ता की विश्वविख्यात छवि से नवाजा ।”
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“इससे मैंने पाया तन मन इससे मैंने पाया जीवन मेरा तो बस कर्त्तव्य यही कर दूँ सब कुछ इसके अर्पण मैं तो समाज की थाति हूँ मैं तो समाज का हूँ सेवक मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय”
स्वयं को समाज का सेवक कहने वाला और समष्टि के लिए व्यष्टि का बलिदान करने बाला यह व्यक्ति कोई साधारण लेखक या कवि मात्र नहीं है अपितु यह तो भारतीय राजनीति में एक स्तम्भ के रूप में स्थापित हो चुके पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं । भारतीय राजनीति में जिस प्रकार से उन्होंने एक नए युग की शुरुआत की, वह निश्चय ही प्रशंसनीय है ।
भारतीय राजनीति में एक गैर-कांग्रेसी नेता के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले प्रतिभावान जननायक श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 26 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उस समय इनकी माता श्रीमती कृष्णा देवी और पिता थी कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने शायद ही यह सोचा होगा कि उनकी यह संतान एक दिन प्रधानमन्त्री पद पर सुशोभित होकर उनका नाम रोशन करेगा ।
वाजपेयीजी की आरम्भिक शिक्षा ग्वालियर के ही सरस्वती शिशु मन्दिर विद्यालय में हुई । इसके बाद इन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर कानपुर के दयानन्द एंग्लो-वैदिक कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की ।
यद्यपि उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की परन्तु किसी कारणवश वह इसे पूरा नहीं कर पाए । श्री वाजपेयीजी अपने आरम्भिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य बन गए थे । उन्होंने आर्य कुमार सभा में भी सक्रिय भूमिका निभाई ।
यद्यपि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बाजपेयी जी की सक्रिय भूमिका का उल्लेख नहीं मिलता है तथापि वर्ष 1942 में उन्हें ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के तहत जेल जाना पड़ा था । इसके बाद बह भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आए और शीघ्र ही अपनी प्रतिभा के बल पर उनके राजनीतिक सचिव बन गए ।