भारतीय जाना चाहती है कि क्यों भारत में रुपए में किए गए भुगतान को अस्वीकार नहीं करता है उत्तर दीजिए
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फरवरी 2019 की स्थिति के अनुसार अद्यतन)
भारत में विदेशी मुद्रा लेनदेन को शासित करने से संबंधित विधिक ढांचा विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 द्वारा प्रदान किया जाता है। दिनांक 1 जून 2000 से प्रभावी हुए विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी लेनदेन को या तो पूंजीगत अथवा चालू खाता लेनदेन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। किसी निवासी द्वारा किए गए सभी लेनदेन जिनमें आकस्मिक देयताओं सहित भारत के बाहर की उसकी आस्तियों/ देयताओं में कोई परिवर्तन नहीं होता है, को चालू खाता लेनदेन कहते हैं।
फेमा की धारा-5 के अनुसार भारत1 के निवासी व्यक्ति केंद्र सरकार द्वारा जिन लेनदेन के लिए विदेशी मुद्रा का आहरण प्रतिबंधित किया गया है, जैसे- लॉटरी से प्राप्त धनराशि से विप्रेषण; रेसिंग/ राइडिंग आदि अथवा किसी अन्य शौक से अर्जित आय का विप्रेषण; लॉटरी की टिकिटें, प्रतिषिद्ध/निषिद्ध पत्रिकाएँ, फूटबाल पूल्स, स्वीप-स्टेक्स आदि खरीदने के लिए विप्रेषण; किसी ऐसी कंपनी द्वारा लाभांश का विप्रेषण जिस पर लाभांश संतुलन (डिविडेंड बैलंसिंग) की अपेक्षा लागू है; चाय तथा तंबाकू के निर्यात के इन्वाइस मूल्य के 10% तक के कमीशन को छोड़कर रूपी स्टेट क्रेडिट रूट के अंतर्गत निर्यात पर कमीशन का भुगतान; भारतीय कंपनियों के विदेशों में संयुक्त उद्यमों/ पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों में इक्विटि निवेश के लिए किए गए निर्यात पर कमीशन का भुगतान; अनिवासी विशेष रुपया (खाता)योजना में धारित निधियों पर ब्याज आय का विप्रेषण तथा टैलिफोन्स की “कॉल बॅक” सेवाओं से संबंधित भुगतान, को छोड़कर किसी भी चालू खाता लेनदेन के लिए विदेशी मुद्रा खरीदने अथवा बेचने के लिए स्वतंत्र है।
विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000, दिनांक 3 मई 2000 की अधिसूचना [जीएसआर सं. 381(ई)] तथा दिनांक 26 मई 2015 की अधिसूचना जी.एस.आर. 426(ई) में दिए गए अनुसार नियमों की संशोधित अनुसूची-III, सरकारी राजपत्र तथा हमारी वेबसाइट www.rbi.rg.in पर उपलब्ध “अन्य विप्रेषण सुविधाएं” पर मास्टर निदेश के अनुबंध में उपलब्ध है । jayada bada ho gaya suurrry