भारतीय संविधान में अनेक संशोधन न्यायपालिका और संसद की अलग-अलग व्याख्याओं का परिणाम रहे हैं। उदाहरण सहित व्याख्या करें।
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इस प्रश्न के लिए सबसे उचित उदाहरण होगा आर्टिकल 368 का। इस आर्टिकल के अंतर्गत आता है संविधान में किसी भी प्रकार का संशोधन करने का हक और नियम।
आर्टिकल 368 में सभी ऐसे नियम बताए गए हैं जिनको ध्यान में रखते हुए ही संविधान के किसी भी अन्य आर्टिकल में संशोधन किया जाना चाहिए।
केश्वानंद भारती v. केरल राज्य सरकार के केस में:
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था की संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है परंतु संसद किसी भी प्रकार की बुनियादी चीज़ों में फेर बदल नहीं कर सकती।
मिनर्वा मील के केस में सुप्रीम कोर्ट ने, संसद द्वारा बनाए गए आर्टिकल 368 के धारा 4 और धारा 5 को अवैध बताते हुए खारिज कर दिया था। इन दो धाराओं के जुड़ जाने से संसद के पास पूरी तरह से संविधान को बदलने की ताकत होती जो सही नहीं है।
Answer with Explanation:
भारतीय संविधान में अनेक संशोधन न्यायपालिका और संसद की अलग-अलग व्याख्याओं का परिणाम रहे हैं :
केशव नंद भारती मुकदमे में संसद की संशोधन की शक्ति को नियंत्रित किया गया है। इस मुकदमे के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसद संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 43वां एवं 44वां संशोधन 42वें संशोधन द्वारा किए गए परिवर्तनों को समाप्त करने के लिए किया गया । सर्वोच्च न्यायालय ने भी कुछ ऐसा निर्णय दिए जो आगे चलकर संसद के लिए अनुल्लंघनीय हो गए। जैसे सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि आरक्षण की व्याख्या 50% से अधिक नहीं हो सकती। अतः स्पष्ट है कि संसद एवं न्यायपालिका के मतभेदों के बीच कई संवैधानिक संशोधन हुए।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है? व्याख्या करें।
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सन् 2000-2003 के बीच संविधान में अनेक संशोधन किए गए। इस जानकारी के आधार पर आप निम्नलिखित में से कौन-सा निष्कर्ष निकालेंगे-
(क) इस काल के दौरान किए गए संशोधनों में न्यायपालिका ने कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं किया।
(ख) इस काल के दौरान एक राजनीतिक दल के पास विशेष बहुमत था।
(ग) कतिपय संशोधनों के पीछे जनता का दबाव काम कर रहा था।
(घ) इस काल में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं रह गया था।
(ङ) ये संशोधन विवादास्पद नहीं थे तथा संशोधनों के विषय को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहमति पैदा हो चुकी थी।
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