Bhagavad Gita chapter 6,6.38-45
Answers
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 38
।।6.38।।
हे महबाहो क्या वह ब्रह्म के मार्ग में मोहित तथा आश्रयरहित पुरुष छिन्नभिन्न मेघ के समान दोनों ओर से भ्रष्ट हुआ नष्ट तो नहीं हो जाता है |
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 39
।।6.39।।
हे कृष्ण मेरे इस संशय को निशेष रूप से छेदन (निराकरण) करने के लिए आप ही योग्य है क्योंकि आपके अतिरिक्त अन्य कोई इस संशय का छेदन करन वाला (छेत्ता) मिलना संभव नहीं है।
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 40
।।6.40।।
श्रीभगवान् ने कहा हे पार्थ उस पुरुष का न तो इस लोक में और न ही परलोक में ही नाश होता है हे तात कोई भी शुभ कर्म करने वाला दुर्गति को नहीं प्राप्त होता है।।
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 41
।।6.41।।
योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को प्राप्त होकर वहाँ दीर्घकाल तक वास करके शुद्ध आचरण वाले श्रीमन्त (धनवान) पुरुषों के घर में जन्म लेता है।
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 42
।।6.42।।
अथवा (साधक) ज्ञानवान् योगियों के ही कुल में जन्म लेता है परन्तु इस प्रकार का जन्म इस लोक में निसंदेह अति दुर्लभ है।
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 43
।।6.43।।
हे कुरुनन्दन वह पुरुष वहाँ पूर्व देह में प्राप्त किये गये ज्ञान से सम्पन्न होकर योगसंसिद्धि के लिए उससे भी अधिक प्रयत्न करता है।
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 44
।।6.44।।
उसी पूर्वाभ्यास के कारण वह अवश हुआ योग की ओर आकर्षित होता है। योग का जो केवल जिज्ञासु है वह शब्दब्रह्म का अतिक्रमण करता है।
भगवद् गीता अध्याय 6 श्लोक 45
।।6.45।।
परन्तु प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करने वाला योगी सम्पूर्ण पापों से शुद्ध होकर अनेक जन्मों से (शनै शनै) सिद्ध होता हुआ तब परम गति को प्राप्त होता है।