bharat ki vartman stithi par speech
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सोने की चिड़ियाँ आज़ाद तो हो गयी,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,
भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,
अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी है
खेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,
किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,
कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,
किसान उगाता है तभी तो देश खाता है
आखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,
ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,
लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,
समय आने पर उसे ही इस दुनिया में आने से रोकते हो
अब तो शिक्षा भी राजनीति से जुड़ गई,
डालरूपी भविष्य की चिड़ियाँ बसने से पहले ही उड़ गई,
ज्ञान के उपवन में अब तो सत्ता के फूल लगाए गए है,
ये वही आँगन है जहाँ कलाम और अंबेडकर उगाये गए है
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