Geography, asked by nitinrawat758, 4 months ago

Bharat mein nagarikaran k star kis prakar
mapa jata hai​

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Answered by kamleshdevi953022876
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नगरीकरण विकास प्रक्रिया का ही एक अंग है। ग्रामीण क्षेत्रों जनसंख्या का नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तन आर्थिक विकास की दृढ़ कसौटी है। पिछड़े हुए स्थिर समाज में नगरीकरण की प्रक्रिया वस्तुतः धीमी होती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए रोज़गार उपलब्ध कराने में नगर सक्षम नहीं होते। किन्तु फिर भी ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की तरफ तेजी से पलायन रोज़गार पाने के उद्देश्य से ही होती है और इस स्थिति में यह पलायन तब और तेज हो जाता है जब पूंजी गहन उद्योगों की बजाय श्रम गहन उद्योगों पर बल दिया जाता है। इसके विपरीत नगरीकरण की गति धीमी तब होती है जब कुल जलसंश्या के अनुपात में नगरीय जनसंख्या बहुत ही उच्च स्तर पर पहुंच जाती है। यह स्थिति अभी कुल मिलाकर 30 देशों में आई है, जो विकसित औद्योगिक देश कहलाता है।

Answered by anjali13547
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नगरीकरण

नगरीकरण

एशिया में नगरीकरण

विवरण नगर क्षेत्रों का भौतिक विस्तार या उसके क्षेत्रफल, जनसंख्या आदि में बेतहाशा वृद्धि 'नगरीकरण' कहलाता है। यह एक वैश्विक परिवर्तन है।

परिभाषा संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा के अनुसार- "ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का शहरों में जाकर रहना और काम करना भी 'नगरीकरण' है।"

भारत में नगरीकरण के कारण रेलों का विकास, अकाल, नगरीय जीवन का आकर्षण, उद्योगों का विस्तार, नगरों में स्थायी रोज़गार आदि।

दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहर (2001, भारत) मेरठ, नासिक, जबलपुर, जमशेदपुर, आसनसोल, धनबाद, फरीदाबाद, इलाहाबाद, अमृतसर, विजयवाड़ा और राजकोट।

विशेष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर मुंबई है, जिसकी जनसंख्या 2001 में 1 करोड़, 20 लाख थी।

अन्य जानकारी भारत में नगरीकरण जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। नगरीय जनसंख्या जो 1901 में 2 करोड़ 56 लाख थी, वही 2001 में 28 करोड़ 53 लाख थी।

नगरीकरण विकास प्रक्रिया का ही एक अंग है। ग्रामीण क्षेत्रों जनसंख्या का नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तन आर्थिक विकास की दृढ़ कसौटी है। पिछड़े हुए स्थिर समाज में नगरीकरण की प्रक्रिया वस्तुतः धीमी होती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए रोज़गार उपलब्ध कराने में नगर सक्षम नहीं होते। किन्तु फिर भी ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की तरफ तेजी से पलायन रोज़गार पाने के उद्देश्य से ही होती है और इस स्थिति में यह पलायन तब और तेज हो जाता है जब पूंजी गहन उद्योगों की बजाय श्रम गहन उद्योगों पर बल दिया जाता है। इसके विपरीत नगरीकरण की गति धीमी तब होती है जब कुल जलसंश्या के अनुपात में नगरीय जनसंख्या बहुत ही उच्च स्तर पर पहुंच जाती है। यह स्थिति अभी कुल मिलाकर 30 देशों में आई है, जो विकसित औद्योगिक देश कहलाते हैं।

20वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध भारत के लिए आर्थिक गतिरोध का काल रहा है। फलस्वरूप नगरीकरण की गति बहुत अधिक नहीं रही। 1911 में कुल नगरीय जनसंख्या मात्र 11प्रतिशत थी, जो 1941 में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई। इस प्रकार 30 वर्ष में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि मात्र 3 प्रतिशत रही। 1951 की जनगणना में नगरीय जनसंख्या का कुल जनसंख्या का 17.3 प्रतिशत हो गई। इस वृद्धि का कारण वास्तविक न हो कर संख्यात्मक अधिक था, क्योंकि 1951 की जनगणना में नगर की बड़ी उदार परिभाषा अपनाई गई। 1961 में नगर की परिभाषा पुनः सख्त कर दी गई। अतः 1951-9161 के बीच नगरीय जनसंख्या में मात्र 0.7 प्रतिश की वृद्धि दर्ज की गई। इस प्रकार 1961 में नगरीय जनसंख्या का कुल जनसंख्या का 18 प्रतिशत हो गई। 1971 में अपनाई गई नगरीय क्षेत्र की परिभाषा के अनुसार किसी क्षेत्र को नगर क्षेत्र होने के लिए निम्नलिखित शर्ते पूरी करनी चाहिए -

वह स्थान नगरपालिका, नगर निगम, छावनी या अनुसूचित नगर क्षेत्र हो।

अन्य सभी स्थानों के लिए -

5,000 की न्यूनतम जनसंख्या होनी चाहिए।

पुरुष कार्यकारी जनसंख्या का कम से कम 75 प्रतिशत गैर कृषि कार्यों में संलग्न होना चाहिए।

जनसंख्या घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति वर्ग किमी. होना चाहिए।

1971 की जनगणना में नगर क्षेत्र की दी गई परिभाषा कुछ दृढ़ अवश्यक है, परन्तु अन्य देशों की तुलना में यह परिभाषा फिर भी काफ़ी अच्छी है। उदाहरणस्वरूप - जापान में 30,000 से अधिक जनसंख्या वाली जगहों को शहर माना जाता है। इसके सापेक्ष भारत की परिभाष लचीली होने के बावजूद देश में नगरीय जनसंख्या कुल जनसंख्या का 23.3 प्रतिशत थी, जो कि 1991 में बढ़कर 25.7 प्रतिशत हो गई।

भारत में औद्योगिकीकरण की क्रिया द्वितीय योजना में ही प्रारम्भ हो गई थी परंतु नगरीय जनसंख्या में वृद्धि तृतीय योजना तक कुछ भी विशेष नहीं हुई। यह विदित है कि द्वितीय और तृतीय योजना में भारी औद्योगिकीरण की नींव डाली गई परंतु इससे भारी एवं मूल उद्योगों पर विशेष बल दिया। भारी एवं मूल उद्योग पूंजी गहन होते है। इतः इनकी रोज़गार क्षमता काफ़ी सीमित होती है। यही कारण है कि इनका विकास ग्रामों में उत्पन्न श्रमशक्ति को नगरों में अवशोषित न कर सका, जिससे इसक अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव भी व्यक्त नहीं हुआ। अतः जो औद्योगिकीरण की क्रिया प्रारम्भ की गई थी, उसको गति प्रदान नहीं किया जा सका। परिणामस्वरूप तीव्रता से औद्योगिकरण नहीं हो सका। इसके अलावा 1971 की जनगणना में नगर क्षेत्र की अधिक सख्त परिभाषा करने के कारण जो थोड़ा बहुत नगरीकरण में प्रतिशत वृद्धि हुई थी वह भी दब गयी।

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