Bhikhmango ki duniya mei berok pyaar lutanewala kavi esa kyun kehta hai ki weh apne hridya par asaphalta ka ek nishan bhar ki tarah leker ja raha hai?kya weh nirash hai ya prasn hai. WHOEVER ANSWERS CORRECT IN HINDI II WILL GIVE THEM BRAINLIEST....
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यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आँसुओं से हरा करो
नहीं बे-हिजाब वो चाँद-सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो
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कवि भिखमंगो कि दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने के लिए कहता है किंतु वह अपने कार्य में पूर्णतः सफल नहीं हो पाता। अपनी इसी असफलता को वह एक निशान अर्थात भार की तरह लेकर जा रहा है। यह कवि की असफलता है जो उसके मन में निराशा की भावना को बढ़ा रही थी। इस निराशा के कारण ही कवि भी निराश है।