बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।
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bhai ye tu Google SA dekh le please
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बनारस शहर के लिए दो मानवीय क्रियाएँ कविता में आई हुई है:
इस महान शहर और पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है :
बनारस शहर में धुल भरी आंधी चलने से इस शहर के गली-गली में धूल-ही धूल नज़र आ रही है| जिसके कारण पूरा शहर धुल में हो गई है|
अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर अपनी दूसरी टांग से बिलकुल बेखबर
बनारस आध्यात्मिकता में इतना रत है की उसे हो रहे बदलावों के विषयों में ज्ञान नहीं है| बनारस अब आधुनिकता की तरफ़ जा रहा है | वह बस आध्यात्मिकता के रंग में रंगा हुआ दूसरे पक्ष से बिलकुल अनजान खड़ा है |
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बनारस में धीरे-धीरे क्या क्या होता है? धीरे धीरे से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?
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