चित्त सब समय आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता । जितने बड़े पैमाने पर मनुष्य
के विधान बनाए गए, उतनी ही मात्रा में लोभ, मोह जैसे विकार भी विस्तृत होते गए,
बात भूल गए, आदर्शों को मज़ाक का विषय बनाया गया और संयम का दकियानूसी म
गया । परिणाम जो होना था, वह हो रहा है । यह कुछ थोड़े-से लोगों के बढ़ते हुए लोभ क
है, परंतु इससे भारतवर्ष के पुराने आदर्श और भी अधिक स्पष्ट रूप से महान और उपयोगी
देने लगे हैं।
भारतवर्ष सदा कानून का धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में
कर दिया गया है। धर्म को थाखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है । यही
है कि जो धर्मभीर है, वे भी त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते ।
इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोज जा सकते है कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता
हो. भीतर-वाहर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी बीज़ है। अब
संवा, ईमानदारी, सच्चाई और आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए है । वे दब अवश्य गए हैं, लेवि
हुए
है. | आज भी वह मनुष्य में प्रेम करता है. महिलाओं का सम्मान करता है. झूट अं
चोरी को गलत समझता है, दूसरो का पीड़ा पहुँचाने का पाप समझता है
नष्ट नहीं
प्रश्न :
।
(1)
मनुष्य ने आदी का मज़ाक का विषय किस कारण बना लिया
A) कानून
B) उन्नति
C) लाभ
(a) धर्म में काम
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btw I am a army too ✌
Explanation:
last option धर्म के काम
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he'll be a great day of school and
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